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तृतीय अध्याय
उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएँ
विषयवस्तु
जैन आगम साहित्य में आचारांग व उपासकदशांगसूत्र का अपना विशिष्ट महत्त्व है। जहा आचारांग में साधु जीवन के आचार-विचार और चर्या का वर्णन है वहीं उपासकदशांगसूत्र में श्रावकों को जीवनचर्याओं व आचारों का वर्णन प्राप्त होता है। इसमें भगवान महावीर के समकालीन आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता व सालिहीपिता-इन दस श्रावकों के जीवन चरित्रों का वर्णन है । उनको संक्षिप्त विषयवस्तु यहाँ दी जा रही है :
१. आनन्द धावक
ईशा पूर्व छठी शताब्दी में वाणिज्यग्राम नामक नगर था । यह उत्तर बिहार के एक भाग में जहाँ लिच्छिवियों की राजधानी वैशाली है, उसी के पास स्थित था। बनिया ग्राम आज भी उस जगह पर है। उसमें आनन्द नामक एक सम्पन्न व आदर्श गृहस्वामी निवास करता था।
आनन्द का ऐश्वयं-गाथापति आनन्द बहुत सम्पन्न, प्रतिष्ठित और वैभवशाली था। जिसके पास भवन, रथ, गाड़ी, घोड़े, वाहनों की बहुलता हो, सोना-चाँदी, हीरे, जवाहरात आदि बहुमूल्य आभूषण हों, प्रतिदिन भोजन के बाद अनाथों व असहायों को भोजन आदि का दान करता हो उसे जैन सूत्रों में 'गाथापति' कहा गया है । आनन्द के पास ४ करोड़ स्वर्ण (उस समय की प्रचलित मुद्रा जिस एक मुद्रा का तौल बत्तीस रत्तो होता है) खजाने में, ४ करोड़ व्यापार में व ४ करोड़ आभूषणों में लगा हुआ था।
१. उवासगदसाओ-(सं०) मुनि मधुकर, पृष्ठ २
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