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________________ प्राक्कथन जैन धर्म के इतिहास में श्रावक धर्म की विशेष भूमिका रही है। यही कारण है कि जैन-धर्म की प्रमुख परम्पराओं ने श्रावकाचार पर विस्तार से प्रकाश डाला है। उपासकदशांग श्वेताम्बर परम्परा में श्रावकाचार का आधारभूत ग्रन्थ कहा जा सकता है। इस ग्रन्थ में तत्कालीन दस प्रमुख श्रावकों के जीवन को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत कर श्रावक धर्म का प्रतिपादन किया गया है। अतः यह ग्रन्थ शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करता है। रूपरेखा__ "उपासकदशांग : एक परिशीलन" नामक अपने इस शोध ग्रन्थ की पृष्ठभूमि में हमने ग्रन्थ की विभिन्न विशेषताएं और बहुविध सामग्री के अध्ययन को ध्यान में रखा है। अब तक उपासकदशांगसूत्र के यद्यपि कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं किन्तु सम्पूर्ण ग्रन्थ का, समग्र रूप से तुलनात्मक अध्ययन अभी तक प्रस्तुत नहीं किया गया था। इसलिए हमने प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रतिपादित श्रावकाचार के अध्ययन के अतिरिक्त ग्रन्थ की अन्य विशेषताओं पर भी प्रकाश डालना अपना लक्ष्य रखा है। दस श्रावकों की जीवन-पद्धति और उनके धार्मिक अनुष्ठानों से तत्कालीन सामाजिक जीवन की झांकी देखने को मिलती है। जैन धर्म में गृहस्थ धर्म का मूल रूप इस ग्रन्थ से देखा जा सकता है। उपासकदशांगसूत्र अर्द्धमागधी भाषा का प्रतिनिधि ग्रन्थ है, अतः भाषा की दृष्टि से भी इस ग्रन्थ का अध्ययन किया जाना आवश्यक था। इन सब दृष्टियों को ध्यान में रखते हए मैंने अपने शोध-ग्रन्थ की रूपरेखा को इस प्रकार प्रस्तावित किया है। प्रथम अध्याय : आगम साहित्य एवं उपासकदशांग द्वितीय अध्याय : उपासकदशांग का परिचय तृतीय अध्याय : उपासकदशांग की विषयवस्तु एवं विशेषताएँ चतुर्थ अध्याय : उपासकदशांग का रचनाकाल एवं भाषा स्वरूप पंचम अध्याय : श्रावकाचार षष्ठ अध्याय : उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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