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प्रकाशकीय
आगम-अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, ( राजस्थान) के द्वारा 'उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार' नामक पुस्तक प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है ।
उपासकदशांग श्रावक - आचार को प्रतिपादित करने वाला एक प्राचीन आगम ग्रन्थ माना जाता है । संस्थान के शोधाधिकारी डॉ० सुभाष कोठारी ने इसका आलोचनात्मक अध्ययन कर शोध-प्रबन्ध लिखा, जिस पर इन्हें १९८५ में सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा पी-एच० डी० की उपाधि प्रदान की गयो थी । इस शोध प्रबन्ध के परीक्षक डॉ० मोहनलाल जी मेहता एवं डॉ० गोकुल चन्द जी जैन की अनुशंसानुसार इसे सम्पादित करके प्रकाशित किया जा रहा है । उपासकदशांग, श्रावकाचार का प्राचीनतम एवं प्रथम ग्रन्थ है । डॉ० कोठारी ने इसका श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के श्रावक- आचार को प्रतिपादित करने वाले ग्रन्थों के प्रकाश में तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिसके कारण यह कृति महत्त्वपूर्ण हो गयी है । संस्थान द्वारा इस ग्रन्थ के प्रकाशन का एक उद्देश्य जैन आगमों पर शोध करने वाले युवा विद्वानों को प्रोत्साहित करना है, हमें आशा है कि डॉ० कोठारी भविष्य में भी आगमों के शोध-परक अध्ययन में लगे रहेंगे ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए हमें आदरणीय गणपतराज जी बोहरा के द्वारा सात हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है । संस्थान उनके इस सहयोग के लिए अत्यन्त आभारी है । श्रीमान् गणपतराज जी बोहरा प्रारम्भ से ही संस्थान के विकास हेतु प्रयासशील हैं । वर्तमान में संस्थान के अध्यक्ष के रूप में हमें उनकी सेवायें उपलब्ध हैं । संस्थान के प्रति आपका स्नेह हमेशा बना रहेगा - यही अपेक्षा है |
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ग्रन्थ के सुन्दर और सत्त्वर मुद्रण का कार्य रत्ना प्रिंटिंग वर्क्स ने किया, एतदर्थ हम उनके प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं । ग्रन्थ के प्रूफ संशोधन में अशोक कुमार सिंह एवं महेश कुमार का जो सहयोग रहा, उसके लिए उनके भी आभारी हैं ।
सरदारमल कांकरिया महामंत्री
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फतहलाल हिंगर मंत्री
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