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द्वितीय-अध्याय
उपासकदशांग का परिचय उपासकदशांग को पाण्डुलिपियां एवं परिचय
आगम अंग साहित्य में उपासकदशांग सूत्र सातवां आगम ग्रन्थ है। श्रावक आचार का प्रतिपादक होने से इसे आचारांगसूत्र का पूरक कहा जाता है। यह उपासकदशांगसूत्र हमें हस्तलिखित तथा प्रकाशित प्रतियों के रूप में प्राप्त होता है। उपासकदशांग को पाण्डुलिपियाँ
उपासकदशांग सूत्र की उपलब्ध पाण्डुलिपियों का परिचय विभिन्न सम्पादकों ने अपने संस्करणों में दिया है उसमें से कुछ प्रतियों का परिचय यहाँ दिया जा रहा है :
(क) इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरो कलकत्ता को प्रति-यह प्रति इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी, कलकत्ता में है। इसमें चालीस पन्ने हैं । प्रत्येक पन्ने में दस पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में अड़तीस अक्षर हैं । इस पर संवत् १५६४ श्रावण सुदी १४ का समय लिखा हुआ है । प्रति प्रायः शुद्ध है।
(ख) एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता की प्रति-यह प्रति बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता की लाइब्रेरी की है। इसकी मल प्रति बीकानेर महाराजा के ग्रन्थ भण्डार में रखी हुई है उसकी ही यह नकल है।
इस बंगाल वाली प्रति पर फागुन सुदी ९ गुरुवार संवत् १८२४ दिया हुआ है। इसमें कोई टीका भी नहीं है, केवल गुजराती टब्बा अर्थ है । इस प्रति का प्रथम व अन्तिम पत्र बीच के पत्रों से मेल नहीं खाता, अन्तिम पृष्ठ टीका वाली प्रति का है, सूची में दिया गया विवरण इन पृष्ठों से मिलता है, इससे मालूम होता है कि सोसाइटी के लिए किसी दूसरी प्रति से नकल की गई है। बीकानेर सूची में दिये गये संवत् १११७ उस प्रति के लिखने का नहीं अपितु टीका के बनाने का होना चाहिए। यह बहुत सुन्दर लिखी हुई
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