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उपासकदशांग : एक परिशीलन महानिशीथ व जीतकल्प को छेद सूत्र माना है।' जीतकल्प को छोड़कर बाकी पाँचों का उल्लेख नन्दीसूत्र में भी हुआ है ।२ स्थानकवासी परम्परा में दशाश्रुतस्कन्ध, व्यवहार, बृहत्कल्प व निशीथ ये चार ही छेद सूत्र माने जाते हैं।
जैन आगम साहित्य की संख्या के सम्बन्ध में अनेक मतभेद हैं । श्वेताम्बर स्थानकवासी व तेरापन्थ सम्प्रदाय बत्तीस आगम मानता है, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय पेंतालीस आगम मानते हैं, इनमें ही कुछ गच्छ चौरासी आगम भी मानते हैं। दिगम्बर परम्परा आगम के अस्तित्व को स्वीकार तो करती है, परन्तु उनकी मान्यतानुसार सभी आगम विच्छिन्न हो गये हैं। __ इस प्रकार जैन साहित्य में आगमों को प्रमुख व सर्वोच्च सम्मान प्राप्त है। तीथंकर और केवलज्ञानियों ने जो अपने प्रत्यक्ष ज्ञान से हेय, ज्ञेय, उपादेय को जैसा देखा, वैसा प्रतिपादित किया, जिसे गणधर व अन्य शिष्यों के द्वारा पहले श्रुत रूप से व बाद में लिपि रूप में संकलित किया गया। इस श्रुत परम्परा व लिखित परम्परा के मध्य, काल के प्रभाव से कुछ श्रुत विच्छिन्न भी हुए परन्तु फिर भी बहुत कुछ शेष रहे । उसी के आधार पर बत्तीस, पैंतालीस व चौरासी आगमों की रचना हुई । इन आगमों में श्रमण व गृहस्थजीवन के प्रत्येक पहलू विशेष रूप से आध्यात्मिक व धार्मिकता को छूने वाले प्रसंग हैं। व्यक्ति अपना आत्म-कल्याण कैसे करें, इसके विभिन्न आयाम प्रतिपादित हैं। दिगम्बर परम्परा आगमों को विलुप्त मानती है, वे केवल बारहवें अंग दृष्टिवाद के कुछ अंश को मानकर उसी के आधार पर आगम रूप में मान्य उनके ग्रन्थों की रचना हुई, ऐसा बताते हैं।
१. समाचारीशतक-आगम स्थापनाधिकार २. "कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा-दसाओकप्पो, ववहारो, निसीहं, महा
निसीह" - नन्दीसूत्र. ७७
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