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________________ १८ उपासकदशांग : एक परिशीलन ' पूर्वगत 1 सत्यप्रवाद आत्मप्रवाद कर्मप्रवाद प्रत्याख्यानप्रवाद विद्यानुप्रवाद कल्याण प्राणावाय क्रियाविशाल लोकबिन्दुसार (घ) दिगम्बर परम्परा में मूल आगमों का लोप माना गया है । फिर भी शौरसेनी प्राकृत में रचित कुछ ग्रन्थों को आगम जितना महत्त्व दिया गया है व इन्हें वेद की संज्ञा देकर चार अनुयोगों में विभक्त किया है :(क) प्रथमानुयोग - पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, आदिपुराण व उत्तरपुराण आदि ग्रन्थ (ख) करणानुयोग - सूर्य प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जयधवला आदि ग्रन्थ (ग) चरणानुयोग - मूलाचार, त्रिवर्णाचार, रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि ग्रन्थ Jain Education International (घ) द्रव्यानुयोग - प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, आप्तमीमांसा आदि ग्रन्थ (ङ) एक अन्य दृष्टि से आगमों के सुत्तागम, अर्थागम और तदुभयागम ये तीन भेद भी अनुयोगद्वारसूत्र में मिलते हैं । १. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि - जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पृष्ठ १८ २. क अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते - तंजहा सुत्तागमे य अत्यागमे य तदुभया- अनुयोगद्वारसूत्र, ४७० गमे य ख. आवश्यकसूत्र अध्याय १ सूत्र ४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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