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उपासक दशांग : एक परिशीलन
हिमवन्त थेरावली के अलावा अन्य किसी ग्रन्थ में इसका उल्लेख नहीं है । किन्तु खण्डगिरि व उदयगिरि में जो शिलालेख उत्कीर्ण हैं, उससे स्पष्ट है कि आगम संकलन हेतु यह सम्मेलन किया गया था । '
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तृतीय वाचना - वीर निर्वाण ८२७ -८४० के पूर्व भी एक बार और भयंकर दुष्काल पड़ा, जिससे अनेक जेन श्रवण परलोकवासी हो गये और आगमों का कण्ठस्थीकरण यथावत् नहीं रह पाया । इसलिए इस दुर्भिक्ष की समाप्ति पर वीर निर्वाण ८२७ -८४० के मध्य मथुरा में आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में श्रमण संघ एकत्रित हुआ ।
इस सम्मेलन में मधुमित्र, संघहस्ति प्रभृति आदि १५० श्रमण उपस्थित थे, परन्तु आचार्य स्कन्दिल ही समस्त श्रुतानुयोग को अंकुरित करने में महामेघ के समान यानी इष्ट वस्तु के प्रदाता थे ।
जिनदासगण महत्तर ने लिखा है कि दुष्काल के आघात से केवल स्कंदिल ही अनुयोगधर बच पाये, उन्होंने ही मथुरा में अनुयोग का प्रवर्तन किया । अतः यह वाचना 'स्कन्दिली वाचना' नाम से जानी जाती है ।
प्रथम वाचना के समय जैनों का प्रमुख केन्द्र बिहार और दूसरी वाचना का केन्द्र उड़ीसा था । परन्तु निरन्तर दुष्कालों के पड़ने से यह केन्द्र बिहार से स्थानान्तरित होकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश हो गया ।
चतुर्थं वाचना - मथुरा सम्मेलन के समय अर्थात् वीर निर्वाण ८२७-८४० के आस-पास वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में भी
१. क. दोशी, बेचरदास जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पृष्ठ ८२ ख. साध्वी संघमित्रा - जैन धर्मं के प्रभावक आचार्य, पृष्ठ १०-११
२. " इत्थ दूसहदुब्भिक्खे दुवालसवारिसिए नियत्ते सयलसंघ मेलिअ आगमाणओगो पवित्तिओ खंदिलायरियेण " - विविध तीर्थकल्प, पृष्ठ १९
३. प्रभावकचरित्र, पृष्ठ ५४
४. नन्दी चूर्ण, पृष्ठ ९, गाथा ३२
५. क. नन्दीसूत्र, मलयगिरिवृत्ति, गाथा ३३, पृष्ठ ५१ ख. नन्दी चूर्ण, पृष्ठ ९
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