________________
आगम साहित्य और उपासकदशांग
प्रथम एक भिक्षाचर्या जाते-आते समय, द्वितीय-तीन वाचनाएँ विकालवेला में, तीसरी तीन वाचनाएं प्रतिक्रमण के बाद रात्रि में देते थे । '
वाचना प्रदान करने का यह क्रम बहुत मंद होने से मुनियों का धैर्य टूट 'गया । ४९९ शिष्य वाचना को बीच में ही छोड़कर चले गये, परन्तु स्थूलभद्र निष्ठा से अध्ययन में लगे रहे और आठ वर्षों में आठ पूर्वों का अध्ययन कर लिया | २
इस तरह दस पूर्वो की वाचना हो चुकी थी तब साधनाकाल पूर्ण हो जाने से भद्रबाहु पाटलिपुत्र आये । वहाँ यक्षा आदि साध्वियां दर्शनार्थ आयी, वहीं पर स्थूलभद्र ने सिंह का रूप धारण करके चमत्कार दिखाया | यह बात भद्रबाहु को ज्ञात होते ही आगे वाचना देना बंद कर दिया और कहा कि ज्ञान का अहं विकास में बाधक है । स्थूलिभद्र द्वारा क्षमा माँगने व अत्यधिक अनुनय-विनय करने पर शेष चार पूर्वी की वाचना केवल शब्द रूप में प्रदान की, इस प्रकार पाटलिपुत्र वाचना में दृष्टिवाद सहित अंग साहित्य को ही व्यवस्थित करने का प्रयत्न हुआ था ।
૪
द्वितीय वाचना - आगम संकलन हेतु दूसरी वाचना ईस्वी पूर्व द्वितीय शताब्दी अर्थात् वीर निर्वाण ३०० से ३३० के मध्य मे हुई । उड़ीसा के सम्राट खारवेल थे, जो जैन धर्म के उपासक थे । उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का सम्मेलन बुलाकर मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उन्हें संकलित कराया। इस वाचना के प्रमुख सुस्थित व सुप्रतिबुद्ध थे, ये दोनों सहोदर थे ।
१. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९, गाथा ७०
२. " श्री भद्रबाहुपादान्ते स्थूलभद्रो महामतिः । पूर्वाणामष्टकं वर्षेरपाठीदष्टभिर्भृशम् ॥
११
३. परिशिष्टपर्व, सर्ग ९, गाथा ८१ ४. " अह भणइ थूलभद्दो अण्णं रुवं न किचि चत्तारि पुव्वाई |
५. हिमवन्तथेरावली, गाथा १०
Jain Education International
- परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९ - स्थानांगसूत्र मधुकर मुनि से उद्धृत
कहामो इच्छामि जाणिउं जे अहं - तित्थोगालीपइन्ना, ८००
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org