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उपासकदशांग : एक परिशीलन
प्रथम वाचना-वीर निर्वाण १६० के आसपास जैन-संघ को भयंकर दुष्काल से जूझना पड़ा। जिससे समस्त श्रमण-संघ छिन्न-भिन्न हो गया। दुर्भिक्ष के कारण साधु आहार की तलाश में सुदूर देशों की ओर चले गये। दुष्काल समाप्त होने पर विच्छिन्न श्रुत को संकलित करने के लिए वीर निर्वाण १६० वर्ष पश्चात् श्रमणसंघ आचार्य स्थूलिभद्र के नेतृत्व में एकत्रित हुआ। इसका सर्वप्रथम उल्लेख तित्थोगाली में प्राप्त होता है।' पाटलिपुत्र में प्रथम बार श्रत-ज्ञान को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया। जिससे इसे 'पाटलिपुत्र वाचना' नाम दिया गया। यहाँ एकत्रित श्रमणसंघ ने परस्पर विचार संकलन कर ग्यारह अंग संकलित किये। बाहरवें अंग दृष्टिवाद का ज्ञान किसी को नहीं था। उस समय दृष्टिवाद के ज्ञाता सिर्फ भद्रबाह ही थे, जो नेपाल की गिरि-कंदराओं में महाप्राण नामक ध्यान की साधना कर रहे थे। उनसे दृष्टिवाद का ज्ञान लेने के लिए श्रमणसंघ नेपाल में भद्रबाहु की सेवा में उपस्थित हुआ और दृष्टिवाद की वाचना देने का निवेदन किया परन्तु भद्रबाहु ने आचार्य होते हुए भी संघ के दायित्व से उदासीन होकर कहा-मेरा आयुष्य अल्प समय का है जिससे मैं वाचना देने में असमर्थ हैं। इससे श्रमणसंघ क्षुब्ध हो उठा और यह कहकर लौट आया कि संघ की प्रार्थना अस्वीकार करने से आपको प्रायश्चित्त लेना होगा।' पुनः एक श्रमणसंघाटक ने भद्रबाहु के पास आकर निवेदन कर संघ की प्रार्थना दोहराई तो भद्रबाहु एक अपवाद के साथ वाचना देने को तैयार हुए,' कि वाचना मंदगति से अपने समयानुसार प्रदान करेंगे। इस पर भद्रबाहु, स्थूलिभद्र आदि ५०० शिक्षार्थियों को एक दिन में सात बार
१. तित्थोगाली, गाथा ७१४ २. "जं जस्स आसि पासे उद्देसज्झयणगाइ तं सव्वं । संघडियं एक्कारसंगाइं तहेव ठवियाई॥
-उपदेशमालाविशेषवृत्ति, पत्रांक २४१, गाथा २४ ३. नेपाल बत्तणीए य भद्दबाहुसामी अच्छंति चौद्दसपुव्वी ।
-आवश्यकचूर्णि, भाग २, पृष्ठ १८७.' ४. तित्थोगाली, गाथा २८-२९ ५. वही, गाथा २८-२९ ६. वही, गाथा ३५-३६
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