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उपासक दशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति
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यहाँ आकर ठहरने का निमन्त्रण देते थे । इसी तरह का निमंत्रण देते हुए सकडालपुत्र ने वन्दना और नमस्कार कर महावीर से कहा था कि भगवन् पोलासपुर नगर के बाहर मेरी पाँच सो कुम्हारगिरी की धर्मशालायें हैं आप वहाँ प्रतिहारिक, पीठ, संस्तारक ग्रहण कर विराजे । भगवान महावीर चातुर्मास को छोड़कर शेष समय एक से दूसरे जनपद में विचरण करते थे ।
धर्म व आचार - उपासकदशांगसूत्र में भगवान ने धर्म दो प्रकार का बताया है - अगार धर्म और अनगारधर्मं । अनगारधमं में साधक सर्वत्र सर्वात्मना सावद्य कार्यों का परित्याग करता है । भगवान ने अगार धर्म के फिर बारह भेद बतलाए हैं- पाँच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत । एक अन्य प्रसंग में आनन्द श्रावक कहता है कि जिस प्रकार आपके पास अनेक राजा, ऐश्वर्यशाली, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, श्रेष्ठि, सेनापति आदि मुण्डित होकर अनगार रूप में प्रवर्जित हुए हैं उस तरह मैं प्रवजित होने में असमर्थ हूँ, इसलिए आपके पास पाँच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत मूलक बारह गृहीधर्म को स्वीकार करना चाहता हूँ | श्रावक आचार के प्रत्येक व्रत का विस्तृत वर्णन भी पाया जाता है ।"
व्रत- पालन में उपसर्ग -- उपासकदशांगसूत्र में वर्णित दस श्रावकों में से सात श्रावकों को देवजन्य, मानवजन्य एवं वाद-विवादजन्य उपसर्गों का सामना करना पड़ा । कामदेव को उपासना में लीन देखकर पिशाच रूपधारी देव अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और टुकड़े-टुकड़े कर डाले । हाथी के रूप में देव ने कामदेव को सूँड में पकड़कर आकाश में उछाला और गिरते हुए को अपने तीक्ष्ण दाँतों से झेलकर जमीन पर तीन बार पैरों से रौंदा । सर्प के रूप में उसने काम
१. उवास गदसाओ - मुनि मधुकर, ७ / १९३
२. जैन, जगदीशचन्द्र - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ ३७९
३. उवासगदसाओ - मुनि मधुकर, १ / ११
४. वही, १/१२, ७ /२१०
५.
वही, १/१३-४३ ६. वही, २ / ९९ ७. वही, २/१०६
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