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उपासक दशांग : एक परिशीलन
देव के गले में लिपट कर तीखे और जहरीले दाँतों से उसकी छाती पर डंक मारा ।' चुलनिपिता को पिशाचरूप देव ने उसके पुत्र को मारकर तीन मांस खण्ड किये व उबलते पानी की कढ़ाई में खौलाया एवं उसके मांस और रक्त से चुलनिपिता के शरीर पर छिटकाव किया । सुरादेव श्रावक को देव ने व्रत नहीं छोड़ने पर विभिन्न प्रकार के सोलह भयंकर रोग उत्पन्न करने की धमकी दी। इसी तरह की धमकी चुल्लशतक को देव ने देते हुए कहा यदि तुम व्रत नहीं छोड़ोगे तो तुम्हारी सभी स्वर्ण मुद्राओं को आलभिका नगरी के तिराहे, चौराहे आदि में बिखेर दूंगा । कुण्डकौलिक और देव ने नियतिवाद तथा पुरुषार्थवाद पर परस्पर वाद-विवाद किया । " व्रत नहीं छोड़ने पर देव ने सकडालपुत्र की पत्नी की हत्या करने एवं उसके मांसखंड उबलते पानी में खौलाकर उस मांस और रक्त से शरीर पर छिड़काव करने के लिए कहा । " महाशतक को ब्रह्मचर्यजन्य उपसर्ग हुआ । स्वयं उसकी पत्नी रेवती ने मोह और उन्मादजनक कामोद्दीपन चेष्टाएँ प्रदर्शित कीं । धर्म-पुण्य, स्वर्ग, मोक्ष से विषय सुख प्राप्त नहीं होने की बात 1 कही । इस प्रकार श्रावकों की साधना में उपसर्ग आने का उल्लेख उपासकदशांगसूत्र में विस्तार से हुआ है ।
अन्य जैन आगमों में भी स्त्री और नपुंसकजन्य उपसर्ग होते थे' । साधु कामवासना के वशीभूत होकर घृणित कार्यों को करते थे । अन्यतीथकों के साथ कभी-कभी वाद-विवाद में संघर्ष भी करना पड़ता था । "
१. उवास गदसाओ – मुनि मधुकर, २ / १०९
२ . वही, ३/१३०, ४/१५१, ५/१५८
३. वही, ४ / १५२
४. वही, ५ / ९६०
५. वही, ६/१६८ - १७१
६. वही, ७ / २२७ ७. वही, ८ / २४६
८. बृहत्कल्पभाष्य, १/२४९३-९९
९. सूत्रकृतांग सूत्र, ४/२ १०. निशीथभाष्य, ५/२
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