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उपासकदशांग : एक परिशीलन उस समय जैन धर्म के अलावा अन्य मत भी प्रचलित थे । महावीर के अनुयायी श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका के रूप में धार्मिक क्रियाओं का पालन करते थे। उपासकदशांगसत्र में जो तीर्थङ्कर शब्द प्रयुक्त हआ है, वह साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चार तीर्थों की स्थापना के संदर्भ में है। भगवान महावीर को उपासदशांगसूत्र में 'आदिकर' तीर्थङ्कर कहा गया है ।' गोशालक ने महावीर को 'महामाहण' भी कहा है । २
श्रमण संघ-उपासकदशांगसूत्र के अनुसार भगवान महावीर अपने श्रमण संघ सहित विहार करते थे।३ उस समय उनके श्रमण संघ में चौदह हजार श्रमण एवं छत्तीस हजार श्रमणियाँ थीं। अनेक आचार्यबाहर भी विचरण करते थे ।५ श्रावक-श्राविकाओं की संख्या भी उस समय विशाल थी। उनमें आनन्द, कामदेव, चुलनिपिता, सकडालपुत्र आदि दस श्रावक और शिवानन्द आदि श्राविकायें प्रमुख थीं।
आहार-विहार व आश्रय स्थल-उपासकदशांगसत्र में उल्लेख मिलता है कि इन्द्रभूति गौतम वाणिज्यग्राम में आहार लेने गये थे, उस समय आनन्द को अवधिज्ञान होने के बारे में उन्हें भ्रान्ति हुई थी, इस घटना से पता चलता है कि साधु-साध्वी आहार लेने के लिए गाँव या नगर में स्थित अपने अनुयायियों के यहाँ पर जाते थे। इसी तरह उपासकदशांगसूत्र से यह भो ज्ञात होता है कि उस समय महावीर और उनके श्रमण समुदाय का विचरण क्षेत्र मुख्यतया चम्पा, वाराणसी, वाणिज्यग्राम, आलभिका, काम्पिल्यपुर, पोलासपुर, राजगृह और श्रावस्ती आदि नगर थे। महावीर और उनक सहवती साधु, साध्वी प्रायः नगर के बाहर चैत्य, उद्यान एवं वन मे हो ठहरते थे। ऐसे चैत्यों में-पूर्णभद्रचैत्य, दृतिपलाशचैत्य, कोष्टकचेत्य; उद्यानो मे-गुणशाल उद्यान, वनों में शंखवन, सहस्राम्र वन आदि मुख्य थे। महावीर क श्रावक भो उन्हें अपने साधु-साध्वी सहित अपने
१. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/९ २. वही, ७/२१८ ३. वही, १/९ ४. वही. १/९ ५. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ ३८९
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