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उपासक दशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति
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मदिरापान - उपासक दशांगसूत्र में कहा गया है कि पन्द्रह कर्मादानों को जानना चाहिये, किन्तु उसका आचरण नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसमें रसवाणिज्य भी है ।' रसवाणिज्य का अर्थ टीकाकार ने मदिरा आदि रसों का व्यापार किया है । एक अन्य प्रसंग में रेवती शराब के नशे में उन्मत्त लड़खड़ाती हुई एवं बाल बिखेरकर महाशतक के पास आई थी । इससे स्पष्ट है कि उस समय मदिरापान का प्रचलन था ।
अन्य जैन आगमों में भी मदिरा पीने-पिलाने तथा राजा-महाराजाओं के सत्कार के लिए उपयोग में लाने के प्रसंग आते हैं । ज्ञाताधर्मकथा में उल्लेख है कि द्रौपदी के स्वयंवर पर विविध प्रकार की सुरा, मद्य, सीधु, प्रशना द्वारा राजा-महाराजाओं का सत्कार किया था । ३
मांस भक्षण में
मांस भक्षण - महाशतक गाथापति की पत्नी रेवती तत्पर रहती थी । वह लोहे की सलाखों पर सेके हुए, घी आदि में तले हुए तथा आग पर भुने हुए बहुत प्रकार के मांस एवं सुरादि का आस्वादन करती थी । एक अन्य प्रसंग में रेवती अपने पीहर के नौकरों से प्रतिदिन दो-दो बछड़े मंगाकर उनका मांस खाती थी । "
अन्य आगमों में भी मांस तलकर, भूंजकर, सुखाकर एवं नमक मिलाकर तैयार करने का विवरण प्राप्त होता है । ऐसे भोज का भी उल्लेख मिलता है, जहाँ जीवों को मारकर मांस अतिथियों को परोसा जाता था । परन्तु जैन परम्परा में सामान्यतः इस प्रकार के भोजन का कठोरता से निषेध था ।
१. उवासगदसाओ - - - मुनि मधुकर, १ / ५१
२. वही, २ / २४६
३. ज्ञाताधर्मकथा, १६
४. उवासगदसाओ - मुनि मधुकर, ८/२४०
५. वही, ८ / २४३
६. विपाकसूत्र, २
७, जैन, जगदीशचन्द्र - जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ २०९
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