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________________ २०४ उपासकदशांग : एक परिशीलन का चावल पूर्वी प्रान्तों में पैदा होता था। वर्षा होने पर उसे छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर खेतों में बोया जाता था। फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रोपा जाता, रक्षा की जाती एवं बाद में काटा जाता था।' मसाले, गन्ने व कपास की भी खेती का भी उल्लेख मिलता है। उद्यान-उपासकदशांग में विभिन्न उद्यानों और चैत्यों का वर्णन प्राप्त होता है एवं उनमें अनेक पुष्पों का उल्लेख मिलता है। चम्पानगरी में पूर्णभद्र चैत्य,३ वाराणसी में कोष्टक चैत्य, आलभिका में शंखवनउद्यान,५ काम्पिल्यपूर व पोलासपुर में सहस्र आम्रवनउद्यान, राजगृह में गुणशील चैत्य, श्रावस्ती में कोष्ठव चैत्य का उल्लेख प्राप्त होता है। अन्य जैन आगमों में कहा गया है कि उद्यान नगर के पास होने से क्रीड़ास्थल भी होता था।' वहाँ वृक्ष, लता एवं कुंज बने रहते थे जहाँ धनाढ्य लोग क्रीड़ा करते थे। इसमें भांति-भाँति के फूल खिलते थे।" पशुपालन-उपासकदशांगसूत्र में पशुपालन का उल्लेख प्राप्त होता है। आनन्द गाथापति के चार व्रज थे, प्रत्येक व्रज में दस हजार गायें थीं। कोल्लाक सन्निवेश में मुर्गों और युवा साँड़ों के बहुत से समूह थे । वहाँ गायों, भैंसों और भेड़ों की प्रचुरता थी।' ३ गायों के गोकुल के १. स्थानांगसूत्र, ४/३५५ २. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ १२२ ३. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/१, २/९२ ४. वही, ३/१२४; ४/१५० ५. वही, ५/१५७ ६. वही, ६/१६५, ७/१८० ७. वही, ८/२३१ ८. वही, ९/२६९, १०/२७३ ९. निशीथसूत्र, ८/२ १०. व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका, पृष्ठ २२७-२२८ ११. निशीथसूत्र, ७/१ १२. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/४ १३. वही, १/७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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