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उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति
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आर्थिक जीवन (क) उत्पादन
आर्थिक साधन हो व्यक्ति के पथ-प्रदर्शन का एकमात्र पहलू होता है। प्रत्येक ऐसा कार्य जिससे अर्थोपार्जन होता है, उत्पादन कहा जा सकता है । भूमि, श्रम, पूँजी एवं प्रबन्ध आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के मूल कारण रहे हैं। ___ खेती-उपासकदशांगसूत्र में खेती के सम्बन्ध में बताया गया है कि वाणिज्य ग्राम में सैकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भमि सुन्दरमार्ग सीमा सी लगती थी।' वह ईख, जौ और धान के पौधों से लहलहाती थी। एक अन्य प्रसंग में आनन्द एक हल के हिसाब से पाँच सौ हलों के अतिरिक्त समस्त वस्तुविधि का परित्याग करता है।३ पन्द्रह कर्मादानों के वर्णन में स्फोटकर्म का उल्लेख है जो खेतों में हल चलाने से सम्बन्धित है। इससे स्पष्ट है कि खेती करना उस समय आजीविका चलाने का एक प्रमुख कमें था।
खेतो की फसल-प्राचीन समय में चावल की खेती बहतायत से होती थी। आनन्द द्वारा ओदण विधि का परिमाण करते हुए कलमजाति के धान के चावलों के सिवाय और सभी प्रकार के चावलों का परित्याग करने का प्रसंग आता है।
अन्य जैनागमों में खेती व उसकी फसलों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। उनमें उल्लेख है कि हलों में बैल जोतकर खेती की जाती थी, ठीक समय पर बैल को जोतने से खेती अच्छी होती थी। फसलों में चावलों को अन्य आगमों में भी प्रमुख स्थान दिया है। कलमशालि किस्म
१. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/७ २. वही,
१/७ ३. वही, ४. वही,
१/५१ ५. वही,
१/३५ ६. उत्तराध्ययन टीका, १/१०
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