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________________ २०५ उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति सन्दर्भ अन्य श्रावकों केवर्णन में भी आते हैं। बैलों को बधिया करने का भी उस समय रिवाज था । जिसे निर्लाञ्छन कर्म कहा है।' ____ अन्य जैन आगमों में भी पशुओं को धन माना गया है। गाय, बैल, भैंस तथा भेड़ें राजा की सम्पत्ति गिनी जाती थीं।२ पशुओं के समूह को प्रज, गोकुल अथवा संगिल्ल कहा गया है। वृक्ष-उपासकदशांग में वृक्षों का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। श्रावकों के पन्द्रह कर्मादानों में अंगार कर्म और वन कर्म ये दो नाम इससे सम्बन्ध रखते हैं। जंगलों से लकड़ी प्राप्त करने के लिए वृक्षों को गिराना वन कर्म और वृक्षों की लकड़ियों को जलाकर कोयला बनाकर बेचने के व्यापार को अंगार कर्म कहा है। व्यापार-उपासकदशांगसूत्र में पन्द्रह कर्मादानों का वर्णन उस समय प्रचलित व्यापार की सूचना देता है। इनमें हाथीदांत, लाख, चर्बी, मधु, अस्त्र-शस्त्र, तेल आदि के व्यापार का उल्लेख प्रमुख है।५ मिट्टी के बर्तनों का व्यापार भी बड़ी मात्रा में होता था। पोलासपुर में सकडालपुत्र कुम्हार रहता था । शहर के बाहर उसकी ५०० दुकानें थी, जहाँ बहुत से नौकर-चाकर काम करते थे। वे पहले मिट्टी में पानी डालकर उसे सानते, फिर राख और गोबर मिलाकर चाक पर रखकर इच्छानुसार करक, वारुक, पराते और कुण्डे बनाते थे। साथ ही छोटे घड़े, कलश, सुराहियाँ, उष्ट्रिका आदि बर्तनों का निर्माण भी वे करते थे । अन्य जैन आगमों में भी लुहार, हाथी-दांत का व्यापार', कुम्हार' १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/५१ २. औपपातिक सूत्र, ६ ३. व्यवहारभाष्य. २/२३ ४. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/५१ ५. वही, १/५१ ६. वही, ७१४८ ७. उत्तराध्ययनसूत्र, १९/६६ ८. आवश्यकचूणि, २, पृष्ठ २९६ ९. अनुयोगद्वारसूत्र, १३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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