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________________ २०० उपासकदशांग : एक परिशीलन पोलासपुर में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था।' राजगृह में श्रेणिक राजा राज्य करता था।२ श्रावस्ती में भी जितशत्रु राजा का ही शासन था । अन्य जैनागमों में भी प्रजा के पालक को राजा कहा जाता था जो लोकाचार, वेद, राजनीति में कुशल और धर्म में श्रद्धावान होता था।' यहाँ जितशत्रु को अनेक जगहों का राजा बताया गया है, यह विचारणीय राज्य के प्रमुख सदस्य-उपासकदशांगसूत्र में अग्निमित्रा भगवान से कहती है कि आपके पास बहुत से आरक्षक अधिकारी, राज्य मंत्रिमण्डल के सदस्य, परामर्श मण्डल के सदस्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, सुभट, योद्धा, प्रशासन अधिकारी, मल्ल एवं लिच्छिवि गणराज्य के सदस्य, अनेक राजा, ऐश्वर्यशालो, तलवर, मांडविक, कौटुम्बिक, धनी, श्रेष्ठी, सेनापति एवं सार्थवाह अनगार रूप में प्रवर्जित हुए।५। इससे यह मालूम होता है कि उस समय राज्य का शासन एकतन्त्रात्मक एवं गणतन्त्रात्मक दोनों ही प्रणालियों में प्रचलित था। राजा अपने अधीनस्थों को उचित कार्य सौंपता था। सेना और सेनापति की भी आवश्यकता रहती थी। (ङ) न्याय व्यवस्था उपासकदशांगसूत्र में कहा गया है कि श्रावकों को झूठा लेख लिखना तथा झूठो गवाही देना आदि आचरण नहीं करना चाहिए। इससे संकेतात्मक रूप से ज्ञात होता है कि उस समय न्याय व्यवस्था भी रही होगी। १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/३, २/९२, ३/१२४, ४/१५०, ५/१५७, ६/१६५, ७/१८० २. वही, ८/२३१ ३. वही, ९/२६३, १०/२७३ ४. व्यवहारभाष्य, १, पृष्ठ १२८ ५. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, ७/२१० ६. वही, १/४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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