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उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति १९९ हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली मेरी माता को मेरे सामने लाकर मार डालना चाहता है, अतः अच्छा हो कि मैं इसे पकड़ लूँ।' मां-बेटे के प्रगाढ़ रिश्तों को समझने के लिये यह घटना काफी है।
पुत्री-पुत्री के सम्बन्ध में उपासकदशांगसूत्र में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। (ग) मित्र व स्वजन__ उपासकदशांगसूत्र में स्वजन और मित्रों का भी उल्लेख आता है। इन्हें विभिन्न अवसरों पर खाने पर बुलाया जाता था। आनन्द ने सोचाबड़े परिमाण में आहारादि तैयार करवा कर मित्र, ज्ञातिजन, निजक, स्वजन, सम्बन्धी तथा परिजन को मैं आमंत्रित करूं और उन्हें भोजन कराऊँ ।२ जिससे इस अवसर पर मैं उन्हें अपने आत्म-कल्याण के निर्णय से अवगत करा सकूँ। धर्माराधना में संलग्न होने से पूर्व आनन्द और कामदेव अपने बड़े पुत्र, मित्रों तथा जातीय जनों से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक समझते थे और अनुमति मिलने पर पौषधशाला में जाते थे।
अन्य जैनागमों में भी समय-समय पर स्वजन और सम्बन्धियों को आमंत्रित करने के दृष्टान्त प्राप्त होते हैं। महावीर के जन्म के समय अनेक मित्रों, सम्बन्धियों, स्वजनों तथा अनुयायियों को आमंत्रित किया गया था । (घ) शासन-व्यवस्था
उपासकदशांगसूत्र में राजा को प्रजा के पालक के रूप में माना गया है। वाणिज्यग्राम, चम्पानगरी, वाराणसी, आलभिका, काम्पिल्यपुर,
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१. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, ३/१३६ २. वही, १/६६ ३. क. वही, १/६६
ख. वही, २/९९ ४. कल्पसूत्र, ५/१०४
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