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उपासक दशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति
(ख) पारिवारिक जीवन
उपासकदशांगसूत्र में आनन्द आदि श्रावकों के कथन से संयुक्त परिवार का चित्र प्रस्तुत होता है । कोल्लाकसन्निवेश में आनन्द गाथापति के अनेक मित्र, ज्ञातिजन, निजक, सम्बन्धी तथा परिजन निवास करते थे । '
प्रमुख सदस्य - उपासकदशांगसूत्र में कहा गया है कि घर का मुखिया ही घर का स्वामी होता था । आनन्द ही सारे परिवार का मुख्य केन्द्रबिन्दु, प्रमाण, स्थापक, आधार, आलंबन, मार्ग-दर्शक एवं मेढीभूत था ।
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अन्य आगम ग्रन्थों में भी पिता या प्रपिता को घर का मुखिया या स्वामी माना गया है। सभी उस मुखिया की आज्ञा का पालन करते थे ।
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पत्नी - आनन्द गाथापति की पत्नी शिवानन्दा उसके प्रति अनुरक्त व स्नेहशील थी, पति के प्रतिकूल होने पर भी वह विरक्त नहीं होती थी । एक अन्य प्रसंग में देव ने सकडालपुत्र श्रावक को कहा कि तुम अपना व्रत भंग नहीं करोगे तो मैं तुम्हारी धर्मसहायिका, धर्मवैद्या, धर्मद्वितीया, धर्मानुरागरत्ता, समसुखदुःख सहायिका को घर से ले आऊँगा । इसी तरह के और प्रसंग भी उपासकदशांगसूत्र में आते हैं, जिनसे पति-पत्नी के मधुर एवं कठोर सम्बन्धों की जानकारी मिलती है ।
अन्य आगम ग्रन्थों में भी पत्नी को गृहस्वामिनी की संज्ञा दी है, जो परिवार में सब कामों का ध्यान रखती थी और अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करती थी ।
बहुपत्नी प्रथा - उपासकदशांगसूत्र से बहुपत्नी प्रथा की भी जानकारी
१. उवासगदसाओ - मुनि मधुकर १/८ २ . वही, १ / ५
३. आवश्यकचूर्ण, पृष्ठ ५२६
४. उवासगदसाओ – मुनि मधुकर, १ / ६ ५. बही, ७/२२७
६. आवश्यकचूर्ण, पृष्ठ ५२६
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