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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन उपस्थिति का पता चलता है । एक अन्य प्रसंग में मंखलिपुत्र गौशालक ने सकडालपुत्र से कहा-श्रमण भगवान् महावीर महामाहण हैं।' इसी तरह गौशालक ने कहा कि अप्रतिहत ज्ञान के धारक तीनों लोकों द्वारा सेवित, पूजित एवं सत्कर्मसम्पत्ति से युक्त होने से महावीर को महामाहण कहता हूँ। उपासकदशांगसूत्र में सकडालपुत्र को छोड़कर आनन्द, कामदेव आदि सभी को 'गाथापति' संज्ञा से सम्बोधित किया है । सकडालपुत्र कुम्हार जाति का था । इस प्रकार उपासकदशांगसूत्र में आर्य-अनार्य, ब्राह्मण, महामाहण, क्षत्रिय, गाथापति, कुम्हार ये शब्द ही भारतीय समाज की वर्ण तथा जाति व्यवस्था से सम्बन्धित मिलते हैं। इनके स्वरूप एवं कार्य के सम्बन्ध में उपासकदशांगस्त्र की टीका में कुछ विशेष नहीं कहा गया है। अन्य जैन आगमों में इसका विशेष विवरण प्राप्त है। आर्य और अनार्यों के सम्बन्ध में बताया गया है कि आर्य विजेता एवं गौरवर्ण होते हैं तथा अनार्य उनके अधीन तथा कृष्ण वर्ण वाले होते हैं ।५ ब्राह्मणों को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था, इसलिए अनेक स्थानों पर 'समण' तथा 'माहण' शब्द का प्रयोग साथ-साथ किया गया है।' क्षत्रिय बहत्तर विद्याओं का अध्ययन करते थे एवं भुजबल से देश पर शासन करते थे। संसार त्याग कर वे सिद्धि भी प्राप्त करते थे।" गाथापतियों को प्राचीन भारत में वेश्य माना गया है। ये धन-धान्य से सम्पन्न, जमीन-जायदाद और पशुओं के मालिक होते थे एवं व्यापार द्वारा धनोपार्जन करते थे। मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने वाले व्यापारी कुम्हार कहलाते थे ।' १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर,७२१८ २. वही, ७/२१८ ३. वही, १/३,२/९२ ४. वही, ७/१८१ ५. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ २२१ । ६. आवश्यकचूणि, पृष्ठ ९३ ७. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ २२९ ८. वही, पृष्ठ २२९ ९. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, ७/१८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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