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________________ षष्ठ अध्याय उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति सामाजिक जीवन उपासकदशांगसूत्र में तत्कालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति के सन्दर्भ में उपयोगी सामग्री प्राप्त होती है। यद्यपि यह सामग्री परिमाण की दृष्टि से मात्र उपासकदशांगसूत्र तक ही सीमित है, किन्तु मूलतः यह श्रावक समुदाय से सम्बन्धित होने के कारण इसमें श्रावकों की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति का एक स्पष्ट चित्र उभर कर आता है जो सम्पूर्ण आगम वाङ्मय के अध्ययन के क्रम में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान है । उपासकदशांगसूत्र में सामाजिक जीवन का स्वरूप वर्ण, जाति, कुटुम्ब परिवार, स्वजन, मित्र, पति-पत्नी और तत्सम्बन्धी रिश्तों की स्थिति के सन्दर्भ में उपलब्ध होता है। ये वस्तुतः सामाजिक जीवन की आधारभूत संस्थाएँ हैं जिनका सामूहिक स्वरूप 'समाज' या 'सामाजिक संगठन' है । (क) वर्ण एवं जाति उपासकदशांगसूत्र में वर्ण व जाति का उल्लेख निम्न प्रसंगों में दृष्टिगोचर होता है। सूधर्मा स्वामी महावीर द्वारा प्रतिपादित उपदेश को जम्बूस्वामी को बताते हुए कहते हैं कि 'भगवान् द्वारा भाषित अर्धमागधी भाषा सभी आर्यों और अनार्यों की भाषा में परिणत हो गयी। जातियों के सन्दर्भ में उपासकदशांगसूत्र में आर्य-अनार्य के रूप का यह एक मोटा भेद प्राप्त होता है । इसके प्रभेदों का भी उल्लेख हुआ है। सकडालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा भगवान् से कहती है कि हे देवानुप्रिय! आपके पास बहुत से आरक्षक, राज्यमन्त्रिमण्डल के सदस्य, राजन्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, सुभट, योद्धा, सैनिक, प्रशासन अधिकारी, मल्ल, लिच्छिवि आदि आकर प्रवजित हुए ।२ इस कथन से क्षत्रिय और ब्राह्मण जाति की १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/११ २. वही, ७/२१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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