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________________ १९२ उपासकदशांग : एक परिशीलन अनुमति विरत प्रतिमाका धारी श्रावक कहा है।' चारित्रसार और लाटीसंहिता में कहा है कि जो आहारादि के लिए भी अपनी अनुमति नहीं देता है, जैसा आहार मिल जाता है, ग्रहण कर लेता है, वह अनुमति त्यागप्रतिमाधारी श्रावक है।२ अमितगतिश्रावकाचार में धर्म में आसक्त, सर्वपरिग्रह से रहित पापकार्यों में अनुमति नहीं देने वाले को अनुमतित्यागी कहा गया है। वसुनन्दिश्रावकाचार में कहा है कि स्वजनों एवं परजनों द्वारा पूछे गये गृहसम्बन्धी कार्य में भी अनुमोदना नहीं करता है, उसके अनुमतिविरतप्रतिमा होती है। इस प्रकार उद्दिष्टभत्त या अनुमतित्याग प्रतिमा में गृहस्थ सर्वप्रकार के आरम्भों का कृत, कारित तथा अनुमोदन का भी त्याग कर देता है, भोजन भी, अपने निमित्त से बनाया गया ग्रहण नहीं करता है, किसी भी प्रकार के प्रश्नों का 'हां' या 'ना' में उत्तर देता है। भोजन भी अपने पुत्र या अन्य स्वधर्मी के घर पर कर लेता है। गृहस्थी में रहते हुए भो वह गृहस्थधर्म से एक प्रकार से अलग हो जाता है । ११. श्रमणभूतप्रतिमा --- इसमें गहस्थ श्रमण के सदश बन जाता है, वह श्रमण की तरह ही भिक्षा-चर्या आदि का परिपालन करता है। दिगम्बर परम्परा में उद्दिष्ट त्याग को ग्यारहवीं' प्रतिमा माना है। उपासकदशांगसूत्रटीका में कहा है कि श्रमणभूतप्रतिमा में सिर के बालों का यथाशक्ति लुञ्चन किया जाता है। साध जैसा वेश धारण करता है, भंडोपकरण भी साध जैसे ही रखता है और किंचित् राग होने से गोचरी (आहार) अपने ही घरों से लेता है । समय (सीमा) जघन्य एक दो या तीन दिन और उत्कृष्ट ग्यारह ख. सागारधर्मामृत, ७/३० १. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ८८ २. क. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह), पृष्ठ २५६ ख. लाटीसंहिता, ६/४४/४५ ३. अमितगतिश्रावकाचार, ७७६ ४. वसुनन्दिश्रावकाचार, ३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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