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________________ श्रावकाचार १९१ मर्यादा रखता है, एवं खाने के बर्तन मात्र, जो भी लकड़ी या मिट्टी के हैं, उन्हें रखता है । इनके अतिरिक्त समस्त आरम्भों से त्यागी गृहस्थ परिग्रह विरत उच्चरित होता है। १०. उद्दिष्टभत्तवर्जन प्रतिमा दिगम्बर परम्परा में इसे अनुमतित्याग नाम दिया है, जिसका समावेश श्वेताम्बर में उद्दिष्ट भत्तवर्जन में कर लिया है। इस प्रतिमा में गृहस्थ अपने निमित्त बने भोजन का भी त्याग कर देता है। सांसारिक बातचीत का हाँ या नहीं में उत्तर देता है। सिर उस्तरे से मुड़ाता है, कैवल शिखा मात्र रखता है। इसकी काल मर्यादा कम से कम एक, दो व तीन दिन और उत्कृष्ट दस मास की होती है, ऐसा उपासकदशांगसूत्रटीका में कहा है ।' दशाश्रुतस्कन्ध में कहा गया है कि जो निरन्तर ध्यान और स्वाध्याय में तल्लीन रहता है, सिर के बालों का शस्त्र से मुण्डन कराता है, चोटी, जो गहस्थाश्रम का चिह्न है, रखता है वह उद्दिष्टभत्तत्याग प्रतिमाधारी कहा जाता है।२ रत्नकरण्डकश्रावकाचार और सागारधर्मामत में बताया गया है कि जो आरम्भ, कृषि तथा लौकिक कार्यों में रुचि नहीं रखता है, उनका अनुमोदन भी नहीं करता है, वह अनुमतित्यागी श्रावक है।३ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में जो पापमूलक गृहस्थ के कार्यों की अनुमोदना नहीं करता है और गृहकार्यों में उदासीन रहता है, उसे १. "उद्दिटुकडं भत्तंपि वज्जए किमय सेसमारंभं । सो होई उ खुरमुण्डो, सिहलि वा धारए कोइ ॥ दव्वं पुट्ठो जाणं जाणे इइ वयइ नो य नो वेत्ति । पुव्वोदिय गुणजुत्तो दस मासा कालमाणेणं ॥" -उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ६७ २. ....सेणं खुरमुंडए वा सिहा धारए वा तस्स णं आभट्ठस्सं सभायट्ठस्स वा कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए -दशाश्रुतस्कन्ध, ६/२६/१० ३. क. “अनुमतिरारम्भे वा परिग्रहे वैहिकेषु कर्मसु वा । नास्ति खलु यस्य समधीरनुमतिविरतः स मन्तव्यः ॥" रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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