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उपासकदशांग : एक परिशीलन
करने को रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा कहा है।' वसुनन्दिश्रावकाचार एवं सागारधर्मामृत के अनुसार मन, वचन, काय से कृत, कारित एवं अनुमोदित आदि नौ प्रकार से दिन में मैथुन का त्याग करता है, उसके दिवामैथुनत्याग प्रतिमा होती है। धर्मसंग्रहश्रावकाचार में कहा है कि दिन में ब्रह्मचर्य और रात्रि में भोजन के त्याग वाला रात्रिभक्तवती है।३ लाटीसंहिता में बताया है कि रात्रिभक्त त्याग प्रतिमाधारी व्यक्ति रात्रि में पानी पीने का भी त्याग कर देता है एवं दिन में स्त्री-सेवन का भी परित्याग कर देता हैं ।
इस प्रकार कायोत्सर्ग प्रतिमा को नियम, रात्रिभुक्तित्याग या दिवामैथुनत्याग प्रतिमा भी कहते हैं। इसमें श्रावक दिन में पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करता है तथा रात्रि में स्त्री-सेवन की मर्यादा निश्चित कर लेता है। रात्रि में खाने-पीने पर पूर्णरूप से नियन्त्रण रखता है, स्नान नहीं करता है एवं धोती के लांग भी नहीं लगाता है। जीवन को उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होने का यह पांच मास का पांचवां चरण है। ६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा___ इसमें व्रती रात्रि में भी मैथुन सेवन का परित्याग एवं सभी प्रकार की स्त्रियों से परिचय, वार्तालाप आदि का त्याग कर देता है। उपासकदशांगटीका के अनुसार पूर्वोक्त प्रतिमाओं से युक्त मोह को जोत कर रात्रि एवं दिन में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, स्त्रियों से संलापादि नहीं कर, शृङ्गारयुक्त वस्त्र भी धारण नहीं करता है, वह ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है। इसका समय कम से कम एक-दो दिन व उत्कृष्ट छः मास है।५ दशा
ख. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ८१ १. क. उपासकाध्ययन, ८२१ ख. चारित्रसार (श्रावकाचारसंग्रह), पृष्ठ २५५ २. क. वसुनन्दि-श्रावकाचार, २९६ ____ ख. सागारधर्मामृत, ७/१२ ३. धर्मसंग्रहश्रावकाचार, ५/२२ ४. लाटीसंहिता, ६/१९-२०-२१ ५. "पुन्वोदिय गुणजुत्तोविसेसओ विजिय मोहणिज्जो य ।
वज्जइ अबंभमेगंतओ य राई पि थिर चित्तो ।। सिङ्गार कहा विरओ, इत्थीए समं रहम्मि नो ठाइ । चयइ च अइप्यसङ्गं तहा विभूसं च उक्कोस" ॥
-उपासकदशांगसूत्रटीका, अभयदेव, पृष्ठ ६६-६७
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