________________
उपासकदशांग : एक परिशीलन
सामायिक एवं पौषध तो आरम्भिक विकास के विधेयक रूप हैं इसलिए इनका अभ्यास वह अलग प्रतिमा के रूप में करता है ।
१८०
३. सामायिक प्रतिमा
सामायिक का अर्थ समभाव की प्राप्ति है। इसमें समत्व की साधना की जाती है, उपासकदशांगसूत्रटीका में सम्यग्दर्शन और अणुव्रतों को स्वीकार करने के पश्चात् प्रतिदिन तीन बार सामायिक करने की स्थिति को सामायिक प्रतिमा कहा है। इसका समय तीन मास का बताया है । " दशाश्रुतस्कन्ध में पूर्वोक्त दोनों प्रतिमाओं के साथ-साथ सामायिक एवं देशावकाशिक शिक्षाव्रत का भी सम्यक् परिपालन होता है परन्तु अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णमासी को परिपूर्ण पोषधोपवास का सम्यक् - परिपालन नहीं करता, उसे सामायिक प्रतिमाधारी कहा है । रत्नकरuse श्रावकाचार में चार बार तोन-तीन आवर्त और चार बार नमस्कार करने वाला यथाजातरूप से अवस्थित ऊर्ध्वं कायोत्सर्ग एवं पद्मासन का धारक, मन, वचन, काय की शुद्धि से युक्त, तीनों समय सामायिक करने वाले को सामायिक प्रतिमाधारी कहा है । कार्तिकेयानुप्रेक्षा में जो बारह आवर्त सहित चार प्रणाम और दो नमस्कारों को करता हुआ कायोत्सर्ग में अपने कर्मों के विपाक का चिन्तन करता है, वह सामायिक प्रतिमाधारी है । उपासकाध्ययन में नियम से तीनों सन्ध्याओं को विधिपूर्वक सामायिक करना, सामायिक प्रतिमा माना गया है ।" चारित्रसार में रत्नकर१. " वरदंसणवयजुत्तो सामाइयं कुणइ जो उ तिसंज्ञासु उक्कोण तिमासं एसा सामाइयप्पडिमा "
- उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ६५-६६ २. " से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवइ ।
उदिसि अमि उद्दिट्ठ- पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्म पत्ता भवइ |
“चतुरावर्त्तत्रितयश्चतुःप्रणामः स्थितो यथाजात । सामायिक द्विनिषद्यस्त्रि योगशुद्धस्त्रि सन्ध्यम भिवन्दी " ||
४. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ७०-७१
५. उपासकाध्ययन, ८२१
Jain Education International
- दशाश्रुतस्कन्ध, ६/१९
— रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ७/४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org