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उपासकदशांग : एक परिशीलन के साथ आठ मूलगुणों का पालन करने को दर्शन प्रतिमा बताया है।' अमितगतिश्रावकाचार में पवित्र और निर्मल दृष्टि को हृदय में धारण करना दर्शन प्रतिमा कहा है। वसुनन्दिश्रावकाचार में पाँच उदुम्बरों सहित सात कुव्यसनों के त्यागी को दार्शनिक श्रावक माना हैं । सागारधर्मामृत, रत्नकरण्डकश्रावकाचार में प्रतिपादित दार्शनिक श्रावक के स्वरूप को ही दर्शन प्रतिमा बताया है।४ प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में आठमलगुण तथा सात व्यसनों के त्यागी को दार्शनिक श्रावक कहा है ।
इस प्रकार इस प्रतिमा में व्यक्ति आगम वचनों पर दृढ़ श्रद्धा रखता है। सुगुरु, सुदेव और सुधर्म का परिपालन करता है। सम्यकदर्शन को शंका. कांक्षा, वितिकिच्छा, परपाषंडप्रशंसा, परसम्प्रदायस्तुति इन अतिचारों से रहित होकर धारण करता है, पाँच उदुम्बर फलों का एवं सात कुव्यसनों का त्याग करता है, वह सही रूप में सम्यकदर्शन से युक्त दार्शनिक श्रावक है। २. व्रत प्रतिमा
जब व्यक्ति की दृष्टि सम्यक् या शुद्ध हो जाती है, उस समम तक वह अणुव्रतों, गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों का अतिचार रहित एवं निर्दोष पालन करता है । उपासकदशांगसूत्र में पहली प्रतिमा के यथावत् ग्रहण के बाद दूसरी से ग्यारहवीं प्रतिमा के ग्रहण का उल्लेख है ।' यथा
"आणंदे समणोवासए दोच्चं उवासग-पडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं
जाव आराहे" उपासकदशांगसूत्रटीका में व्रत प्रतिमा में दर्शनप्रतिमा से युक्त अणु
१. उपासकाध्ययन, ८२१ २. अमितगतिश्रावकाचार, ७/६७ ३. वसुनन्दि-श्रावकाचार, २०५ ४. सागारधर्मामृत, १२/४ ५. क. प्रश्नोतरश्रावकाचार, १२/४
ख. लाटीसंहिता, १/६ ६. उवासगदसाओ, १/६८
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