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उपासकदशांग : एक परिशीलन (३) धार्मिक-विवेचन-आगमों का प्रमुख उद्देश्य धार्मिकता का प्रतिपादन रहा है। इनमें साधुओं' एवं श्रावकों के आचार-विचार,२ साधुओं के प्रकार और विभिन्न धर्मों एवं उनके मत-मतान्तरों का उल्लेख आया है।
(४) सांस्कृतिक व सामाजिक सामग्री-जैन आगमों में ईस्वी पू० ५वी शती से ईसा की ५ वी शती तक के रहन-सहन, खान-पान, कुटुम्बपरिवार, शिक्षा एवं विद्याभ्यास, रीति-रिवाज आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
(५) भौगोलिक विवरण-जैनागमों से भौगोलिक स्थिति के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। भारत व अन्य सीमावर्ती प्रदेशों के बारे में ज्ञान होता है । जैन श्रमण पूर्व में अंग, मगध, दक्षिण में कोशाम्बी, उत्तर में उत्तर कौशल सीमाओं में विहार करते थे। बृहत्कल्पभाष्य में २५३ आर्य क्षेत्र का वर्णन प्राप्त होता है।
(६) कलात्मक दृष्टि-जैन आगमों में ७२ कलाओं का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है।'' इसके अतिरिक्त चित्रकला, मूर्तिकला, संगीतकला, स्थापत्य, आदि के सम्बन्ध में विविध वर्णन आगम साहित्य में प्राप्त होता है।"
इस तरह जैन आगमों में आध्यात्म और वैराग्य के उपदेशों के साथसाथ सामान्य मानव के क्रियाकलापों षड्आवश्यक, स्वाध्याय, ध्यान, तप,, १. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रु तस्कन्ध । २. उवासगदसाओ-(सं० ) मुनि मधुकर,-प्रथम अध्याय ३. याचारांगचूणि, २/१ ४. सूत्रकृतांगसूत्र-(सं० ) मुनि मधुकर, १/१२/१ ५. बृहत्कल्पभाष्य, ४/५१४७ ६. उत्तराध्ययनटीका, ४, पृष्ठ ८३ ७. कल्पसूत्रटीका, ४, पृष्ठ ९० ८. बृहत्कल्पसूत्र, १/५० ९. बृहत्कल्पभाष्य, १/३२७५-८९ १०. क. ज्ञाताधर्मकथा, १, पृष्ठ २१; ख. समवायांग, पृष्ठ ७७ आदि ११. जैन, जगदीशचन्द्र, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ ३००
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