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________________ १७६ उपासकदशांग : एक परिशीलन चरित्र में, जिनसेन ने हरिवंशपुराण में, देवसेन ने भावसंग्रह में भी ग्यारह प्रतिमाओं का नामोल्लेख नहीं किया है । श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में जहाँ प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है, उनके नाम व क्रम में कुछ अन्तर प्राप्त होता है। श्वेताम्बर प्राचीन साहित्य में (१). दर्शन (२) व्रत (३) सामायिक (४) पौषध (५) नियम (६) ब्रह्मचर्य (७) सचित्तत्याग (८) आरंभत्याग (९)प्रेष्यपरित्याग (१०) उद्दिष्टभत्तत्याग और (११) श्रमणभूत नामों का उल्लेख मिलता दिगम्बर परम्परा में रत्नकरण्डकश्रावकाचार आदि ग्रन्थों में प्रतिमाओं के नाम और क्रम इस प्रकार हैं : (१) दर्शन (२) व्रत (३) सामायिक (४) पौषध (५) सचित्तत्याग (६) रात्रिभुक्तिविरति (७) ब्रह्मचर्य (८) आरंभपरित्याग (९) परिग्रहत्याग (१०) अनुमतित्याग (११) उद्दिष्टत्याग । ___उपर्युक्त श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में वर्णित नामों और क्रमों में अन्तर होने पर भी इनके स्वरूप में विशेष मतभेद दृष्टिगोचर नहीं होता है क्योंकि दिगम्बर साहित्य में जिसे अनुमतित्याग प्रतिमा कहा है श्वेताम्बर साहित्य में उसको उद्दिष्ट त्याग में ही समावेश कर लिया है एवं श्वेताम्बर साहित्य में जो श्रमणभूतप्रतिमा है, उसे दिगम्बर साहित्य में उद्दिष्टत्याग नाम दिया है। इनमें श्रावक का आचार क्रमशः श्रमण के सदृश हो जाता है। प्रत्येक प्रतिमा का सही स्वरूप इस प्रकार समझा जा सकता है। १. दर्शन प्रतिमा दर्शन का सामान्य अर्थ दृष्टि है, अर्थात् व्यक्ति में आध्यात्मिक विकास के लिये सम्यक्दृष्टि का होना आवश्यक है। सम्यक्दृष्टि से तात्पर्य सुगुरु, १. "एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ--तंजहा-दंसणसावए कयन्वयकम्मे, सामाइयकडे, पोसहोववासनिरए, दिया बंभयारी रतिपरिमाणकडे, दिसा वि राओ वि बंभयारो, असिणाई, वियड भोजी मोलिकडे, सचित्तपरिणाए, आरंभपरिणाए, पेसपरिणाए, उद्दिट्ठ भत्तपरिणाए, समणभूए" --समवायांगसूत्र--मुनिमधुकर ११/७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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