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उपासक दशांग : एक परिशीलन
जीवन में उतारना किया है ।" तत्त्वार्थसूत्र में मरणकाल के उपस्थित होने पर प्रीतिपूर्वक नियम को सल्लेखना माना है । २ रत्नकरण्डकश्रावकाचार में निष्प्रतिकार उपसर्ग, दुर्भिक्ष, बुढ़ापा एवं रोग के उपस्थित होने पर धर्म की रक्षा के लिए शरीरका परित्याग करनेको सल्लेखना बताया है । श्रावकप्रज्ञप्ति में राग-द्वेष से विनिर्मुक्त अरहन्त भगवान् द्वारा बतलायी गई जिस अन्तिम मरणावस्था का वर्णन है वह सल्लेखना कहलाती है, कहा है | अमितगतिश्रावकाचार में अपने दुर्निवार अति भयंकर मरण का आगमन जानकर तत्त्वज्ञानी धोर-वीर श्रावक अपने बान्धवों से पूछकर सल्लेखना करे, कहा है । वसुनन्दिश्रावकाचार ने इसे चौथा शिक्षाव्रत माना है | यहाँ कहा गया है कि वस्त्र मात्र परिग्रह को रखकर कहा अवशिष्ट समस्त परिग्रह को छोड़कर पान के सिवाय तीन प्रकार के आहार का त्याग करना सल्लेखना है । " सागारधर्मामृत में मोक्षाभिलाषी आयु के समाप्त होने पर समाधि के योग्य स्थान आदि हेतु दौड़-धूप किए बिना भत्तप्रत्याख्यान समाधि को धारण करने को सल्लेखना बताया है।
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अतिचार
संल्लेखना के भी पाँच अतिचार कहे हैं । उपासकदशांगसूत्र, श्रावकप्रज्ञप्ति एवं योगशास्त्र में इहलोकाशंसाप्रयोग, परलोकाशंसाप्रयोग, जीविता
१. " अपच्छिमेत्यादि पश्चिमवापश्चिमा मरणं- प्राणत्यागलक्षणं तदेवान्तोमरणान्तः तवा मारणान्तिकी, संलिख्यते, कृशीक्रियते शरीरकषायाद्यनयेति संलेखणा तपोविशेषलक्षणा ततः पदत्रयस्य कर्मधारयः तस्याः जोषणासेवना तस्या आराधनाअखण्डकालकरणमित्यर्थः, अपच्छिममारणान्तिकसंलेखना जोषणा आराधनातस्याः” - उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृ० ५०-५१ ' मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता " - तत्त्वार्थ सूत्र, ७/२२
२.
३. " उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकारे धर्मायतनुविमोचनमाहुः
सल्लेखनामार्याः”
४. श्रावकप्रज्ञप्ति, ३७८
५. अमितगतिश्रावकाचार, ६ / ९८
६. वसुनन्दिश्रावकाचार, २७१-२७२
७. सागारधर्मामृत, ८/११
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- रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १२२.
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