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________________ श्रावकाचार रत्नकरण्डकश्रावकाचार में हरित से ढकी वस्तु देना, हरित पर रखी वस्तु देना, अनादरपूर्वक आहार देना, दानविधि भूल जाना, अन्य दाता से मत्सर भाव रखना ये पाँच अतिचार बताये हैं।' अमितगतिश्रावकाचार में उपासकदशांग में वर्णित परव्यपदेश की जगह दूसरों से दान दिलाना वर्णित किया है। अतिचार के इन पांचों स्वरूपों को इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है। १. सचित्तनिक्षेपण-उपासकदशांगसूत्रटीका में दान न देने की बुद्धि से अचित्त वस्तुओं को सचित्त नीहि आदि में मिला देना सचित्तनिक्षेपण कहा है । यथा "सचित्तणिक्खेवणेत्यादिसच्चित्तेषु व्रीह्यादिषु निक्षेपणमन्नादेर दानबुद्धयामातृस्थानतः” चारित्रसार, सर्वार्थसिद्धि व लाटीसंहिता में देने योग्य आहार को सचित्त कमल आदि पर रखना सचित्तनिक्षेपण कहा है । २. सचित्तपिधान-उपासकदशांगसूत्रटीका में पूर्वोक्त भावना से सचित्त वस्तु को अचित्त से एवं अचित्त वस्तु को सचित्त से ढक देना सचित्तपिधान माना है। यथा "सचित्तनिक्षेपणमेवं सचित्तनेफलादिनास्थगनम् सचित्तपिधानं" चारित्रसार, श्रावकप्रज्ञप्तिटोका और लाटोसंहिता में आहार को सचित्त पत्रादि से ढकना सचित्तपिधान कहा है। १. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १२१ २. अमितगतिश्रावकाचार, २३४ ३. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृ० ४७ ४. क. “सचित्ते पद्ममपदामौ निक्षेपः सचित्तनिक्षेपः"-सर्वार्थसिद्धि, ७/३६ ख. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह) पृ० २४९ ग. लाटी संहिता, ५/२२६ ५. उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृ० ४७ ६. क. "सचित्तेनावरणं सचित्तपिधानम्"-चारित्रसार, पृ० १४ ख. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, ३२७ ग. लाटीसंहिता, ५/२२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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