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________________ १६८ उपासक दशांग : एक परिशीलन दान, औषधदान और शास्त्रदान ये चार भेद माने हैं ।" चारित्रसार में भिक्षा, उपकरण औषधि तथा प्रतिश्रय के भेद से चार प्रकार बताये हैं । २ अतिथि को भक्ति - दिगम्बर ग्रन्थों में वर्णित नवधा भक्ति का भी सम्मिश्रण इस व्रत में माना है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा में नवधा भक्ति का उल्लेख प्राप्त होता है परन्तु उपासकाध्ययन में इसके नौ प्रकार बताते हुए कहा है कि अतिथि को देखते ही उठकर स्वागत योग्य शब्द बोलना, ऊँचे आसन पर बैठाना, चरणों को धोकर पूजा करना, प्रणाम करना, फिर मन, वचन, काय, अन्न और जल शुद्ध हैं, ऐसा कहना, इसे नवधा भक्ति माना है । वसुनन्दिश्रावकाचार और सागारधर्मामृत आदि में भी इसी नवधा भक्ति का विधान है । अतिचार - उपासक दशांगसूत्र, आवश्यक सूत्र, तत्त्वार्थसूत्र, श्रावकप्रज्ञप्ति, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, चारित्रसार, योगशास्त्र, सागारधर्मामृत तथा लाटी संहिता में अतिथिसंविभाग के सचित्त निक्षेपण, सचित्तपिधान, कालातिक्रम, परव्यपदेश एवं मत्सरिता ये पाँच अतिचार माने हैं । १. उपासकाध्ययन, ७३९ २. " स चतुर्विधः भिक्षोपकरणोषधप्रतिश्रय भेदात् " ३. उपासकाध्ययन, ७७७ ४. क. वसुनन्दिश्रावकाचार, २२५ ख. सागारधर्मामृत ५/४५ ५. क. " अहासंविभागस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजा - सचित्तणिक्खेवणया, सचित्तपेहणया, कालाइवकमे, परववएसे, मच्छ- उवासगदसाओ, १/५६ रिया" ख आवश्यक सूत्र - बारहवां अणुव्रत ग. तत्त्वार्थसूत्र, ७/३६ घ. श्रावकप्रज्ञप्ति, ३२७ - चारित्रसार (श्रावकाचारसंग्रह) पृ० २४९ ङ. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, १९४ च. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह ) पृष्ठ, ३२४ छ. योगशास्त्र, ३ / ११८ ज. सागारधर्मामृत, ५/५४ झ. लाटीसंहिता, ५/६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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