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श्रावकाचार
१६३ "दुप्रत्युपेक्षितः शय्यासंस्तारकः एतदुपभोगस्यातिचार हेतुत्वादयमतिचार"
श्रावकज्ञप्तिटीका में भी यही स्वरूप है। परन्तु दिगम्बर ग्रन्थोंसर्वार्थसिद्धि, चारित्रसार, तत्त्वार्थवार्तिक में इस अतिचार का अर्थ बिना शोधे और बिना देखे पूजा के उपकरणों जिनमें गन्ध, माला, धूपवस्त्रादि है, से ग्रहण किया है।' ३. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि-उपासकदशांग
सूत्रटीका में एक समान बिना देखे और बिना शोधे भूमि पर मलमूत्रादि छोड़ने को अप्रत्यावेक्षिताप्रमाणितोत्सर्ग कहा है । यथा
"प्रश्रवणंमूत्रं तयोनिर्मितं भूमिःस्थंडिलएत्तेचत्वारोऽपि प्रमादय" सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थवार्तिक, चारित्रसार, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में भी यही स्वरूप प्रतिपादित किया गया है।' ४. अप्रमार्जित दुष्प्रमाजित उच्चारप्रस्रवणभूमि-उपासकदशांगसूत्र
टोका और श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में मलमूत्रादि को, भूमि को पूंजे बिना विसर्जन करने पर, उस स्थिति को अप्रमाणित दुष्प्रमार्जित उच्चार
प्रस्रवण भूमि अतिचार कहा है। ५. पौषध सम्यकननुपालन-उपासकदशांगसूत्रटीका में पौषध में अशन
पान आदि चारों आहारों का त्याग, शरीर-सत्कार, वेशभूषाका त्याग,
१. क. सर्वार्थसिद्धि, ७/३४
ख. तत्त्वार्थवार्तिक, ७/३४/३ ___ ग. चारित्रसार, पृष्ठ १२ २. आसकदशांगपूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४६ ३. क. सर्वार्थसिद्धि, ७/३४
ख. चारित्रसार, १२
ग. श्रावकप्रज्ञप्सिटीका, ३२३ ४. क. उपासकदशांगटीका में तीसरे व चौथे को एक साथ वर्णित किया है।
ख. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, ३२३
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