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________________ १६२ उपासकदशांग : एक परिशीलन उत्सर्ग करना, उपवास करने में आदर नहीं करना और उपवास की क्रियाओं को भूल जाना पौषधव्रत के अतिचार माने हैं ।" इन सभी पर दृष्टिपात करते हुए उपासकदशांगसूत्र के आधार से इनके स्वरूप को इस प्रकार देखा जा सकता है १. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तार - उपासक दशांगसूत्रटीका में बिना देखे - भाले या अच्छी तरह देखे बिना शय्यादि का उपयोग करना अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तार अतिचार कहा है । यथा - "अप्रत्युपेक्षितोजीवरक्षार्थं चक्षुषाननिरीक्षितो "चेतोवृत्ति तयाऽसम्यक्निरीक्षितः शय्याशयनं तदर्थं संस्तारक" उपासक दशांगसूत्रटीका में शय्या से तात्पर्य आसन, कम्बल आदि से है । सर्वार्थसिद्धि, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, चारित्रसार, तत्त्वार्थवार्तिक में बिना देखे, बिना शोधे विस्तर के बिछाने, घड़ी करने आदि को पहला अतिचार बताया है । २. अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तार – उपासदशांगसूत्रटीका में शय्यादि का उपयोग कोमल वस्त्र से झाड़े बिना और व्याकुल चित्त से झाड़-पोंछकर करने को अतिचार माना है । यथा १. क. " ग्रहण विसर्गाssस्तरणान्यदृष्टमृष्टान्य नादरास्मरणे" ख. तत्त्वार्थसूत्र, ७/३४ ग. पुरुषार्थसिद्धय, पाय, १९२ घ. चारित्रसार (श्रावकाचारसंग्रह), २४७ ड. अमितगतिश्रावकाचार, ७/१२ च. योगशास्त्र, ३ / ११७ छ. सागारधर्मामृत, ५/४०-४२ २. क. उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४५-४६ ३. क. सर्वार्थसिद्धि, ७/३४ ख. चारित्रसार, पृष्ठ १२ ग. श्रावकप्रज्ञ सिटीका, ३२३ ४. उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, Jain Education International - रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ११० पृष्ठ ४६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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