________________
श्रावकाचार
कहा है।' श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, रत्नकरण्ड कश्रावकाचार, चारित्रसार, श्रावकप्रज्ञप्ति में भी चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करने का उल्लेख आया है।
इस प्रकार पौषधोपवास व्रत में अशन, पान, खादिम, स्वादिम इन चारों आहारों का, शरीर की वेशभूषा, स्नान आदि का, मैथुन का तथा अन्य समस्त पापपूर्णकार्यों का त्याग किया जाता है। अतिचार
इस शिक्षा व्रत के भी पांच अतिचार माने गये हैं। उपासकदशांग सूत्र, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि में बिना देखे या अच्छी तरह नहीं देखे हुए शय्या का उपयोग, बिना पूंजे या अच्छो तरह पंजे बिना शय्या का उपयोग, बिना देखे या अच्छी तरह देखे बिना शौचादि स्थानों का उपयोग, बिना पूंजे या अच्छी तरह से पंजे बिना शौचादि स्थानों का उपयोग तथा विधिपूर्वक पौषध नहीं करना अतिचारों में सम्मिलित किया है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, चारित्रसार, अमितगतिश्रावकाचार, योगशास्त्र तथा सागारधर्मामृत में बिना देखे सामग्री को लेना, बिना देखेशोधे आसन, शय्या वगैरह का बिछाना, बिना देखे-शोधे मल-मूत्रादि का
१. उपासकदशांगसूत्र--आत्माराम पृ० ८२ २. (क) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र---अणुव्रत, ११
(ख) रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १०६ (ग) चारित्रसार, २४७
(घ) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, ३२२ ३. क. “पंच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा-तंजहा-अप्पडिलेहिय दुप्पडिले
हिय सिज्जासंथारे, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियसिज्जासंथारे, अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवणभूमी, अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय उच्चारपासवण भूमी, पोसहोवासस्स सम्म अणणुपालणया"
-उवासगदसाओ, १/५५ ख. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अणुव्रत, ११ ग. श्रावकप्रज्ञप्ति, ३२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org