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________________ १६० उपासकदशांग : एक परिशीलन निवास, उपवास, आदि करना चाहिए ।' चारित्रसार, अमितगतिश्रावकाचार और श्रावकप्रज्ञप्ति में उपासकदशांगसूत्रटीका की तरह ही चारों प्रकार के आहार-त्याग को पौषध कहा है। योगशास्त्र में पर्व के दिनों में उपवास आदि तप करना, पापमय क्रियाओं का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, शारीरिक शोभा का त्याग करना पौषधोपवास है।३ तत्त्वार्थभाष्य में पर्वकाल को पौषध का काल कहते हैं। आहार का परित्याग करके धर्म सेवन के लिए धर्मायतन में निवास करने को पौषध और पर्वकाल में जो उपवास किया जाय उसे पौषधोपवास व्रत कहा है। पौषध की तिथियाँ-उपासकदशांगसूत्र में अभयदेवसूरि ने द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी को पर्वतिथियाँ माना है ।। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में अष्टमी एवं चतुर्दशी को पर्व तिथियां बतायी हैं ।' कार्तिकेयानुप्रेक्षा एवं श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में भी अष्टमी एवं चतुर्दशी को पर्व तिथि कहा है। योगशास्त्र और तत्त्वार्थभाष्य में अष्टमी चतुर्दशी पूर्णिमा तथा अमावस्या को पर्वतिथियां स्वीकार की है। इन तिथियों के दिनों में पौषधव्रत का पालन विशेष रूप से किया जाता है। चार आहारों का त्याग-उपासकदशांगसूत्रटीका में अशन, पान, फल-मेवा आदि औषधि, स्वादिष्ट पदार्थों के त्याग को आवश्यककरणीय १. उपासकाध्ययन, ७१८/१९ २. (क) चारित्रसार, २४७ (ख) अमितगतिश्रावकाचार, ७/१२ (ग) श्रावकप्रज्ञप्ति, ३२१/२२ ३. योगशास्त्र, ३/८५ ४. "पौषधोपवास नाम पौषधे उपवासः, पौषधोपवासः पौषधः पर्वेत्यनर्थान्तरम्" .-तत्वार्थभाष्य, ७/१६ ५. उपासकदशांगसूत्रटीका--अभयदेव, पृष्ठ ४५ ६. "पर्वण्यष्टम्यां च ज्ञातव्यः प्रोषधोपवासस्तु --रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १०६ ७. (क) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ५७ (ख) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, ३२१ ८. (क) योगशास्त्र, ३/८५ (ख) तत्त्वार्थभाष्य, ७/१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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