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________________ श्रावकाचार पौषधोपवास व्रत उपासक दशांगसूत्रटीका में पौषध का अर्थ अष्टमी आदि पर्व और उपवास का अर्थ अशन, पान, खादिम, स्वादिम आदि चार प्रकार के आहार के त्याग को कहकर इन दोनों के सम्मिलित रूप को पौषधोपवास कहा है ।" इसमें उपवास के साथ पापमय कार्यों का भी त्याग किया जाता है । वह अपने दैनिक कार्यों के स्थान निश्चित कर लेता है | श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में एक दिन रात के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग, अब्रह्मचर्यं सेवन, मणि, सुवर्ण, पुष्पमाला, सुगन्धितचूर्ण, तलवार, हल, मूसल आदि सावद्ययोगों के त्याग करने को पौषधोपवास माना है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार में चारों प्रकार के आहार त्याग को उपवास तथा एक बार भोजन करने को पौषधोपवास कहा है । इस प्रकार एकाशनरूप पौषध के साथ उपवास करने को पौषधोपवास कहा है | कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार जो पर्व के दिनों स्नान, विलेपन, स्त्री-संसर्ग, गंध, धूप, आदि का परिहार करता है, उपवास, एकाशन या विकाररहित निरस भोजन करता है, वह पोषधोपवासधारी कहा जाता है । पुरुषार्थसिद्धयुपाय में सर्वसावद्य कार्यों को छोड़कर सोलह प्रहरों को व्यतीत करने एवं उसके उस पौषधोपवास काल में पूर्ण अहिंसाव्रत का पालन करने को पौषधोपवासव्रत बताया गया हैं । ५ उपासकाध्ययन में कहा गया है कि इस दिन विशेष पूजा, क्रिया एवं व्रतों का आचरण कर धर्म-कर्म को बढ़ाना चाहिए । पर्व के दिनों में रसों का त्याग, एकाशन, एकान्त १. " पौषधशब्दोऽष्टभ्यादि पर्व सुरूढः तत्रपौषधे उपवासः पोषधोपवासः सचाहा - रादि विषयभेदाच्चतुर्विधः इतितस्य " - उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४५ २. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र - अणुव्रत, ११ ३. " चतुराहार विसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्-भुक्तिः । स प्रोषधोपवासो यदुपोष्यारम्भमाचरति ॥” ४. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ५७ ५. पुरुषार्थं सिद्धयुपाय, १५७ Jain Education International १५९ - - रत्नकरण्ड श्रावकाचार, १०९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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