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उपासक दशांग : एक परिशीलन
जो तत्त्व आचार-परम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम कहा जाता है । "
१०. जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान प्राप्त होता है, वह शास्त्र, आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है । "
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११. कर्मों के क्षय हो जाने से जिनका ज्ञान सर्वथा निर्मल एवं शुद्ध हो गया हो, ऐसे आप्त पुरुषों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का संकलन आगम है |
इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वीतराग तीर्थंकर एवं सर्वज्ञ महापुरुषों के प्रामाणिक वचन या उनके कथनों के आधार पर विशिष्ट ज्ञानी ( पूर्वधर) आचार्यों के ग्रन्थ आगम रूप में स्वीकृत किये गये हैं ।
आगम साहित्य का महत्व
जैन आगम साहित्य भारतीय ज्ञान का कोश है । सामान्यतया यह भगवान् महावीर का साक्षात् उपदेश माना जाता है । यह जितना विस्तृत एवं सरल है, उतनी ही उसमें चिन्तन की गम्भीरता तथा दार्शनिकता भरी हुई है। जैनागमों में मूलतः सांसारिक भोगों से चित्त की वृत्तियों को हटाकर, त्याग एवं वैराग्य के द्वारा मुक्ति को प्राप्त करने का सन्देश है। जैन आगमों के प्रतिपादकों ने केवल उपदेश ही नहीं दिये वरन् पहले अपने जीवन को त्याग व वैराग्य के माध्यम से शुद्ध किया और तत्पश्चात् 'सर्वजन सुखाय' उपदेश दिया यथा : -
“सव्वजगजीवरक्खणदयट्ट्याए पावयणं भगवया सुकहियं"
अर्थात् उन्होंने सभी जीवों की रक्षा रूप दया के लिए प्रवचन दिये । ४
१. “ आगच्छत्याचार्यपरम्परया वासनाद्वारेणेत्यागमः".
- सिद्धसेणगणि कृत
भाष्यानुसारिणीटीका, पृ० ८७
२. "सासिज्जइ जेण तयं सत्यं तं वा विसेसियं नाणं । आगम एव य सत्यं आगम सत्यं तु सुयनाणं ॥
- विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ५५९ ३. " आप्तवचनादाविभू तमर्थं संवेदनमागमः " - प्रमाणणयतत्वालोक ४/१, २ ४. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा,
पृष्ठ ४
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