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________________ ३. आवश्यकनिर्युक्ति व धवला टीका में कहा गया है कि तीर्थंकर केवल अर्थरूप का उपदेश देते हैं और गणधर उसे ग्रन्थबद्ध या सूत्रबद्ध करते हैं । ४. आगम साहित्य और उपासकदशांग ज्ञान-रूप-वृक्ष के ऊपर आरूढ़ होकर अनन्तज्ञानी, केवली भगवान् भव्य आत्माओं के प्रतिबोध के लिये ज्ञानकुसुमों की वृष्टि करते हैं, गणधर अपने बुद्धि पट पर उन सकल कुसुमों को झेलकर प्रवचनमाला गंधते हैं, वही आगम है । ७. ८. गणधर के समान ही अन्य प्रत्येक बुद्धों द्वारा निरूपित आगम भी प्रमाण रूप होते हैं । ‍ आप्तवचन आगम माना जाता है, उपचार से आप्तवचन से उत्पन्न अर्थ- ज्ञान को भी आगम कहा गया है । ४ ६. जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान प्राप्त हो, वह आगम कहा गया है | " जिससे वस्तु तत्त्व का परिपूर्ण ज्ञान हो, वह आगम कहा गया है । " जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो, वह आगम है ।" १. " तव नियम नाण रुक्खं - तओ पवयणट्टा" - आवश्यकवृत्ति, गाथा ८९-९० २. क. "अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गन्थन्ति गणहरा णिउणं । सासणस हिट्टाए तओ सुत्तं पवत्तइ ॥ - आवश्यक निर्युक्ति, गाथा १९२ ख. धवलाटीका, भाग १, पृ० ६४ व ७२ ३. " सुत्तं गणहरकथिदं तहेव पत्तेयबुद्धकथिदं च । सुदवणा कथिदं अभिण्ण दसपुव्वकथिदं च ॥ - मूलाचार, ५/८० ४. “ आप्तवचनादाविर्भूतमर्थ संवेदनमागमः । उपचारादाप्तवचनं च ।” - स्याद्वादमंजरीटीका, श्लोक ३८ ५. " आ - अभिविधिना सकलश्रुतविषयव्याप्ति रूपेण, मर्यादया वा यथावस्थित प्ररूपणा रूपया गम्यन्ते परिच्छिद्यन्ते अर्थाः येन सः आगमः " ॥ - आवश्यक ( वृत्ति ) मलयगिरि - रत्नाकरावतारिकावृत्ति - रत्नाकरावतारिकावृत्ति ६. “आसमन्ताद् गम्यते वस्तुतत्वमनेनेत्यागमः " ७. “आगम्यन्ते मर्यादयाऽवबुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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