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उपासक दशांग : एक परिशीलन
(ब) पर्यायवाची शब्द -
जैन - परम्परा के प्राचीनतम ग्रन्थों को सामान्यतया आगम कहा जाता है, परन्तु अतीतकाल में ये ग्रन्थ 'श्रुत' के नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं ।
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स्थानांगसूत्र में आगम-ज्ञाताओं को 'श्रुतकेवली' व 'श्रुतस्थविर' कहा गया है ।" नन्दीसूत्र में आगमों के लिए स्पष्टतः 'श्रुत' शब्द का उल्लेख हुआ है । अनुयोगद्वारसूत्र और विशेषावश्यकभाष्य में आगम को सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना आदि शब्दों से सूचित किया गया है । आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थभाष्य में श्रुत, आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिह्य, आम्नाय, प्रवचन एवं जिनवचन आदि को आगम कहा है ।" इस तरह 'आगम' शब्द के विभिन्न पर्यायवाची शब्द प्रचलित रहे हैं ।
(स) आगम परिभाषा -
विभिन्न ग्रन्थकारों, विद्वानों व आचार्यों ने आगमों की अनेक परिभाषाएं दी हैं, जिनको सम्पूर्ण रूप से व्यक्त करना यहाँ शक्य नहीं है, फिर भी आगम को निम्न परिभाषाएँ द्रष्टव्य हैं
-:
१. आप्त का कथन आगम है । यह परिभाषा अनेक ग्रन्थों में प्राप्त होती है।
२. आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक निर्युक्ति में कहा है कि तप, नियम,
१. स्थानांगसूत्र, सूत्र १५०
२. नन्दीसूत्र - ( सं० ) मुनि मधुकर, सूत्र ७२
३. " सुयसुत्त ग्रन्थ सिद्धंतपवयणे आणवयण उबएसे पण्णवण आगमे या एगट्ठा पज्जवासुत्ते"-अनुयोगद्वारसूत्र, ४
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४. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ८/९७
५. " सूत्र- श्रुतं मतिपूर्वद्वयनेक- द्वादशभेदम् ” - तत्त्वार्थभाष्य, १/२०
६. क. " सर्वज्ञ प्रणीतोपदेशे " - आचारांगसूत्र, १ / ६ / ४ ख. उत्तराध्ययनसूत्र, १९३,
ग. नियमसार, ८
घ. नन्दीसूत्र, ४०-४१
ङ. प्रमाणनयतत्त्वालोक, ४/१
च. रत्नकरण्डकटीका, ४
छ. " आप्तोपदेशः शब्दः " - न्यायसूत्र, १ / १/७
ज. आवश्यक ( वृत्ति ) मलयगिरी, पत्र ४८
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