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आगम साहित्य और उपासकदशांग
प्रथम अध्याय
आगम शब्द का अर्थ, पर्याय एवं परिभाषा
धार्मिक आस्था और धर्म के प्रचार-प्रसार में उसके मौलिक एवं आधारभूत वाङ्मय का विशिष्ट महत्त्व होता है । यही कारण है कि विश्व के प्रत्येक धर्म के अपने पवित्र ग्रन्थ हैं, जिनमें उस धर्म के मूल सिद्धान्त, आदर्श और उपदेश सन्निहित हैं ।
वैदिक परम्परा में 'वेद', बौद्धों में 'त्रिपिटक', ईसाइयों में 'बाईबिल', पारसियों में 'अवेस्ता' और मुस्लिमों में 'कुरानशरीफ़' ऐसे ही पवित्र और पूज्य धर्म-ग्रन्थ हैं । इसी क्रम में जैन धर्मावलम्बियों के धर्म-ग्रन्थों को 'आगम' कहा जाता है । जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर की वाणी इन्हीं आगम ग्रन्थों में आज भी सुरक्षित है ।
(अ) आगम शब्द का अर्थ
आगम शब्द 'आ' उपसर्ग एवं 'गम्' धातु से निर्मित हुआ है, जिसमें 'आ' का अर्थ, पूर्ण और 'गम' का अर्थ गति या प्राप्ति है । आचारांग में आगम शब्द जानने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ।' भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र व स्थानांगसूत्र में 'आगम' शब्द शास्त्र के अर्थ में व्यवहृत हुआ है ।
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पाइअ -सह- महण्णवो में आगम का अर्थ, शास्त्र या सिद्धान्त के रूप में किया गया है । ४
१. क- " आगमेत्ता आणवेज्जा" - आचारांगसूत्र, १२ / ५ / ४
ख- “लाघवं आगममाणे " - आचारांगसूत्र, १ / ६ / ३
२. भगवतीसूत्र, ५/३/१९२
३. स्थानांगसूत्र, ३३८
४. पाइअसद्दम हण्णवो - ( सं० ) सेठ, पं० हरगोविन्ददास, पृ० ११
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