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उपासकदशांग : एक परिशीलन देशावकाशिकवत को सीमा एवं काल
उपासकदशांगसूत्रटीका में इसकी सीमा दिन-रात या न्यूनाधिक समय के लिए बताई गयी है।' रत्नकरण्डकश्रावकाचार, प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, सागारधर्मामत एवं लाटोसंहिता में देशावकाशिकव्रत में घर, मोहल्ला, ग्राम, खेत, वन, नदी आदि की मर्यादा भी एक निश्चित समय के लिए करने को कहा है। यह समय वर्ष, ऋतु, अपमास, चतुर्मास, पक्ष और नक्षत्र के रूप में हो सकता है। अतिचार
उपासकदशांगसूत्र में देशावकाशिकन त के पाँच अतिचार बतलाये हैं, यथा
"तयाणंतरं च णं देसावगासियस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा, तंजहा आणवणप्पओगे, पेसव
णप्पओगे, सद्दाणुवाए, रूवाणुवाए, बहियापोग्गलपक्खेवे" अर्थात् देशावकाशिकवत के पांच अतिचार जानने योग्य हैं, आचरण करने योग्य नहीं हैं। ये पाँच अतिचार हैं-आनयन प्रयोग, प्रेष्य प्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात, बहिःपुद्गलप्रक्षेप ।' प्रायः सभी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर आगम तथा परवर्ती ग्रन्थों में पाँच अतिचारों को गिनाकर यही नाम दिये हैं । तत्त्वार्थसूत्र, रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्रावकप्रज्ञप्ति, पुरुषार्थ. सिद्धयुपाय, चारित्रसार, योगशास्त्र, अमितगतिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत, प्रश्नोत्तरश्रावकाचार एवं लाटोसंहिता में भो आनयन प्रयोग, प्रेष्य प्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात एव पुद्गलप्रक्षेप ही नाम दिये हैं । १. उपासकदशांगसूत्रटीका-आत्माराम, पृ० ८० २. (क) "गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।
देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः ॥ संवत्सरमृतुरयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।"
-रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ५/३-४ (ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/५.६ (ग) सागारधर्मामृत, ५/२६
(घ) लाटीसंहिता, ५/१२२ ३. उवासगदसाओ, १/५४
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