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श्रावकाचार
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१. आनयन प्रयोग-उपासकदशांगसत्रटोका में मर्यादित क्षेत्र के अन्दर
उपयोग के लिये मर्यादित क्षेत्र के बाहर के पदार्थों को मंगाने को आनयन प्रयोग कहा है।' यथा
"इहविशिष्टावधि केभूदेशाभिग्रहेपरतः स्वयंगमनायोगात् यदन्यः सच्चित्तादिद्रव्यानयने प्रयुज्यतेसंदेशकप्रदानादिनात्वभेदमाने
यमित्यानयन प्रयोगः” श्रावकप्रज्ञप्तिटीका एवं प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में भी यही स्वरूप प्रतिपादित किया है। २. प्रेष्य-प्रयोग-उपासकदशांगसूत्रटीका में मर्यादित किये हुये क्षेत्र से
बाहर के कार्यों का सम्पादन करने के लिये नौकर आदि को भेजने को प्रेष्य-प्रयोग कहा है । यथा
"बलादिनियोज्यः प्रेष्यस्तस्यप्रयोगो यथाभिगृहीत प्रवीचारदेश व्यतिक्रमभयात् त्वयावस्यमेवगत्वामभगवाद्यानेयमिदंवा तत्र
कर्त्तय॑मित्येवंभूतः" श्रावकप्रज्ञप्तिटीका एवं प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में मर्यादित क्षेत्र के बाहर किसी नौकर आदि को भेजकर वस्तु मंगवाने को प्रेष्य प्रयोग बताया
३. शब्दानुपात-उपासकदशांगसूत्रटीका में उच्चारण और शब्द के द्वारा नियत सीमा के बाहर की वस्तु मँगाने को शब्दानुपात कहा है। यथा"शब्दस्याऽनुपतनमुच्चारणं ताह येन परकीयश्रवणविवरमनुपतत्यसाविति"
१. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४५ . २. (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, पृष्ठ १९१ (ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/१७ ३. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४५ ४. (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, १९१ ।
(ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/१५ ५. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४५
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