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________________ १५० उपासकदशांग : एक परिशीलन निश्चित समय तक इन्द्रियों के व्यापार से रहित होकर मन को एकाग्रकर, काय को संकोचकर, हाथ की अंजलि बांध लेना और आत्मस्वरूप में लीन होकर सर्वसावध योग को छोड़ने को सामायिक कहा गया है।' उपासकाध्ययन में जिनेन्द्रदेव की पूजा का जो उपदेश है उस समय और उसमें उसके इच्छकजनों के जो-जो काम बतलाये गये हैं, उसे सामायिक कहा है ।२ अमितगति आदि ने आर्त और रौद्र ध्यान को छोड़कर निर्मल धर्म-ध्यान से युक्त होकर भक्तिपूर्वक किया गया कार्य सामायिक माना है।३ सागारधर्मामृत में पं० आशाधर ने केशबन्ध, मुष्ठिबन्ध और वस्त्रबन्ध पर्यन्त सम्पूर्ण राग-द्वेष और हिंसादिक पापों का परित्याग कर आत्मा के ध्यान को सामायिक माना है। लाटीसंहिता में शुद्ध आत्मा का साक्षात् चिन्तन करने को सामायिक कहा है ।५।। __ सामायिक का काल-कार्तिकेयानुप्रेक्षा में पूर्वाह्न, मध्याह्न एवं अपराह्न तीनों को सामायिक का काल कहा है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में इसकी अनिवार्यता प्रातःकाल तथा संध्या के समय बताई है, फिर भी अन्य समय में की हुई सामायिक को दोषपूर्ण नहीं माना है। अमितगतिश्रावकाचार में भी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की तरह तीन बार सामायिक का विधान किया गया है। सामायिक का स्थान-रत्नकरण्डकश्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र ने लिखा है कि जहाँ पर चित्त में विक्षोभ उत्पन्न नहीं हो वहीं सामायिक करनी चाहिए। १. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ५४-५६ २. उपासकाध्ययन, ८/२ ३. क. अमितगतिश्रावकाचार, ६/८६ ___ ख. योगशास्त्र, ३/८२ ४. सागारधर्मामृत, ५/२८ ५. लाटीसंहिता, ५/१५२ ६. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ५३ पुरुषार्थसिद्धय पाय, १४९ अमितगतिश्रावकाचार, ६/८७ रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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