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________________ १४४ उपासक दशांग : एक परिशीलन प्रमाद के वश होकर जो प्राणियों को पीड़ा पहुँचाई जाती है उसे प्रमादचरित माना है ।" योगशास्त्र में गीत, नृत्य, नाटक आदि देखना, कामशास्त्र में आसक्ति, जुआ एवं मद्य का सेवन, जलक्रीडा, पशुओं को लड़ाना, भोजन, स्त्री, देश, राजा सम्बन्धी वार्तालाप करना, आदि को प्रमादाचरण कहा है। " ३. हिस्त्रप्रदान- उपासकदशांगसूत्रटीका, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, सर्वार्थसिद्धि, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, सागारधर्मामृत में हिस्रप्रदान का एक ही स्वरूप बताया है । यहाँ "हिंसा हेतुत्वादायुधानलविषादयो हिसोच्यते, तेषां प्रदानम् । अन्यस्मै क्रोधाभिभूताय अनभिभूताय प्रदानं परेषां समर्पणम्” कहकर बताया गया है कि जिन से हिंसा होती है वह शस्त्र, अस्त्र, आग, विष आदि हिंसा के साधनों को क्रोधाविष्ठ व्यक्ति के हाथों में दे देना हिस्रदान है । परन्तु कार्तिकेयानुप्रेक्षा में बिल्ली, कुत्ता आदि मांस३ भक्षी पशुओं का पालन, आयुध एवं लोहा आदि बेचना, लाख तथा खली आदि का संग्रह करना हिंसादान माना गया है । ४. पापोपदेश - रत्नकरण्डक श्रावकाचार एवं तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकार पूज्यपाद अकलंकदेव ने तियंञ्चों को क्लेश पहुँचाने का, तिर्यञ्चों के व्यापार का उपदेश और आरंभहिंसा से दूसरोंको छलने की कथाओं का १. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८९ २. योगशास्त्र, ३ / ७८-७९-८० ४. ३. क. उपासकदशांग सूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४३ ख. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ७७ ग. सर्वार्थसिद्धि, ७/२१ घ. पुरुषार्थसिद्धय पाय, १४४ ङ. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८९ च. सागारधर्मामृत, ५/८ छ. योगशास्त्र, ३ /७७ कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ४६ , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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