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उपासकदशांग : एक परिशीलन का पोषण करना, दुश्लील स्त्रियों को रखना भी असतिजनपोषण बताया है।'
इन पन्द्रह प्रकार के कार्यों को करने से त्रसजीवों की हिंसा होना अवश्यंभावी है, इस कारण श्रावक इन पन्द्रह प्रकार के कर्मादानों का त्याग करता है, जिससे उसके आध्यात्मिक आचरण में बाधा उपस्थित नहीं हो। अनर्थदंड-विरमण-व्रत
अनर्थदण्डविरमणव्रत की व्याख्या करने से पूर्व यह समझना आवश्यक है कि अनर्थदण्ड, जिनकी मर्यादा निश्चित करनी होती है, वह कितने प्रकार का है ?
__"अवज्झाणायरियं, पमायायरियं, हिंसप्पयाणं, पावकम्मोवएसे"
उपासकदशांगसूत्र में अपध्यानाचरित्त, प्रमादाचरित्त, हिंस्रप्रदान, पापकर्म का उपदेश ये चार अनर्थदण्ड कहे हैं। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, श्रावकप्रज्ञप्ति तथा योगशास्त्र आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों में अनर्थदण्ड के उपासक. दशांग के अनुसार ही चार भेद किये हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में रत्नकरण्डकश्रावकाचार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, सर्वार्थसिद्धि, पुरुषार्थसिद्धयपाय, अमितगतिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत में अनर्थदण्ड के पांच भेद किये हैं। इनमें पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुति व प्रमादचर्या नाम दिये हैं।
ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४७ २. उवासगदसाओ, १/४३ ३. क. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अणुव्रत, ८
ख. श्रावकप्रज्ञप्ति, २८९ ग. योगशास्त्र, ३/७४ (यहाँ अपध्यान में आतं-रौद्रध्यान भी जोड़ा है) ४. क. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ७५
ख. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ४३ से ४७ ग. सर्वार्थसिद्धि, ७/२१ घ. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक १४१-४५ ङ. अमितगतिश्रावकाचार, ६/८१ च. सागारधर्मामृत ५/६
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