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१२. निल्लंछण कर्म - उपासकदशांगटीका में बैल आदि को नपुंसक बनाने के व्यापार को निलच्छन कर्म कहा है ।" योगशास्त्र आदि ग्रन्थों में जानवरों की नाक बींधना, डाम लगाना, खसी, ऊँट आदि की पीठ गालना तथा कान को छेदने को निर्लाच्छन कर्म बताया है । " १३. दवग्गिदावनया - उपासक दशांगसूत्रटीका में जंगल में आग लगाना, जिससे अनियंत्रित होकर त्रस जीवों की घात हो सकती है, ऐसी आग को दवग्गिदावनया कहा है । योगशास्त्र में आदतवश जंगल में आग लगाने को दवदान कहा है | ४
श्रावकाचार
१४. सरदहतलाय सोसणया उपासकदशांगसूत्रटीका में तालाब, झील, सरोवर, नदी आदि जलाशयों को सुखाना इसमें निहित माना है ।" योगशास्त्र आदि में भी यही स्वरूप प्रतिपादित किया है ।
१५. असइजनपोषणया - उपासकदशांगसूत्रटीका में व्यभिचार आदि के लिए वेश्या को नियुक्त करना तथा शिकार आदि के लिए कुत्ते आदि को पालना भी असइजनपोषण कहा है। " योगशास्त्र एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में मैना, तोता, बिल्ली, मुर्गा, मयूर को पालना, दासी
१. उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४०
२. क्र. योगशास्त्र, ३/१११
ख. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, ९/३/३४६
← ३. “दवग्गिदाणंदवाग्नेर्वनाग्ने - दाणं वितरणं क्षेत्रादि शोधन निमित्तं दावाग्नि- उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४०
दानमिति "
५.
४. योगशास्त्र, ३ / ११३ "सरोहृदतडाग परिशोषणता तत्र सरः - स्वभाव निष्पन्नं, हृदोनयादिनां निम्नतरः प्रदेशः तडागं खननसम्पन्नमुतान विस्र्तीण जलस्थानम्, एतेषां शोषणं गोधूमादीनां वपनार्थम् "
६. क. योगशास्त्र, ३ / ११३
- उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४०-४१ ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४८ “असईजण पोसणयाअसतीजनस्यदासीजनस्य पोषणं तद्भाटिकोपिजीवनार्थं यत्ततथा एवमन्यदपि क्रूरकर्मकारिणः प्राणिनः पोषणम्"
७.
--उपासकदशांग सुत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४१
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