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उपासकदशांग : एक परिशीलन पुरुषचरित्र के अनुसार मक्खन, चर्बी, मधु एवं मद्य आदि के बेचने को रस वाणिज्य माना है।' विष वाणिज्य-उपासकदशांगसूत्रटीका में प्राणियों को घात से सम्बन्धित शस्त्रादि को विक्रय करने को विषवाणिज्य कहा है। योगशास्त्र व त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में विष, शस्त्र, हल, यन्त्र, लोहा आदि प्राणघातक वस्तुओं के व्यापार को विषवाणिज्य
बताया है। १०. केश वाणिज्य-उपासकदशांगसूत्रटीका में दास-दासी तथा पशु
आदि जीवित प्राणियों के क्रय-विक्रय का धन्धा करना केश वाणिज्य माना है। योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में भी यही स्वरूप
बताया है। ११. जन्तपीलण कर्म-उपासकदशांगसूत्रटीका में घाणी, कोल्हू आदि
यन्त्रों के द्वारा तिल, सरसों आदि को पीलने का धन्धा करना यन्त्रपीलण कर्म माना है। अन्य सभी ने भो प्रायः यही स्वरूप दिया है।
१. क. योगशास्त्र, ३/१०८ ___ ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४३ २. "विषवाणिज्जं जीवघातप्रयोजनं शस्त्रादिविक्रयोपलक्षणं"
-उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४० ३. क. योगशास्त्र, ३/१०९
ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४४ ४. "केशवाणिज्यं केशवतांदासीदासगवोष्ट्र हस्त्यादिकानां विक्रय रूपं"
- उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४० ५. क. योगशास्त्र, ३/१०८
ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४४ ६. "यंत्रपीड़ण कर्म यंत्रेण तिलेक्षुप्रभृतीनां यत्पीडनरूपकर्मत तथा"
-उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४० ७. क. योगशास्त्र, ३/११०
ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३४५
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