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श्रावकाचार
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है ।' सागारधर्मामृतस्वोपज्ञटोका में पृथ्वीकायिक जीवों के उपमर्दन हेतु उडादि क्रिया द्वारा जीविका को स्फोटक कर्म माना है ।
६. दन्त वाणिज्य - उपासकदशांगसूत्रटोका में हाथी आदि के दाँतों का व्यापार करना, जिसमें चर्म आदि का भी व्यापार सम्मिलित है, उसे दन्त वाणिज्य कहा है ! र योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अनुसार हाथी के दांत, गाय के बाल, उलूक के नाखून, शंख की अस्थि, सिंहादि का चर्म तथा हंस के रोक का व्यापार करना दन्त वाणिज्य बताया गया है |
७. लाख वाणिज्य – लाख, चपड़ी आदि के व्यापार को उपासक दशांगसूत्रटीका में लाक्षावाणिज्य कहा है । " योगशास्त्र तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में लाख, मैनसिल, नील, धातकी के फूल, छाल आदि का व्यापार करना लाक्षावाणिज्य कहा है ।
८. रस वाणिज्य - उपासकदशांगसूत्रटीका में मदिरा आदि रसों के व्यापार को रस वाणिज्य कहा है ।" योगशास्त्र और त्रिषष्टिशलाका
१. क. योगशास्त्र, ३/१०५
ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४०
२. "स्फोटजीविका उडादि कर्मणा पृथिवो कायिका द्युप मद हेतुनाजीवनम् " - सागारधर्मामृत स्वोपज्ञटीका, ५/२१
३.
" दन्तवाणिज्यं हस्तिदंतनखसंख पूर्ति केशादिनां तत्कर्मकारिभ्यः क्रयेणतहि क्रय पूर्वक जीवनम् "
- उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३९-४०
४. क. योगशास्त्र, ३ / १०६
ख. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४१
“लक्खवाणिज्जं संजातजीव द्रव्यान्तरविक्रयोपलक्षणं"
५.
६. क. योगशास्त्र, ३ / १०७
ख. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४२
५. ७. " रसवाणिज्जेसुरादिविक्रय'
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- उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४०
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-उपासक दशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४०
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