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________________ श्रावकाचार १३९ है ।' सागारधर्मामृतस्वोपज्ञटोका में पृथ्वीकायिक जीवों के उपमर्दन हेतु उडादि क्रिया द्वारा जीविका को स्फोटक कर्म माना है । ६. दन्त वाणिज्य - उपासकदशांगसूत्रटोका में हाथी आदि के दाँतों का व्यापार करना, जिसमें चर्म आदि का भी व्यापार सम्मिलित है, उसे दन्त वाणिज्य कहा है ! र योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अनुसार हाथी के दांत, गाय के बाल, उलूक के नाखून, शंख की अस्थि, सिंहादि का चर्म तथा हंस के रोक का व्यापार करना दन्त वाणिज्य बताया गया है | ७. लाख वाणिज्य – लाख, चपड़ी आदि के व्यापार को उपासक दशांगसूत्रटीका में लाक्षावाणिज्य कहा है । " योगशास्त्र तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में लाख, मैनसिल, नील, धातकी के फूल, छाल आदि का व्यापार करना लाक्षावाणिज्य कहा है । ८. रस वाणिज्य - उपासकदशांगसूत्रटीका में मदिरा आदि रसों के व्यापार को रस वाणिज्य कहा है ।" योगशास्त्र और त्रिषष्टिशलाका १. क. योगशास्त्र, ३/१०५ ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४० २. "स्फोटजीविका उडादि कर्मणा पृथिवो कायिका द्युप मद हेतुनाजीवनम् " - सागारधर्मामृत स्वोपज्ञटीका, ५/२१ ३. " दन्तवाणिज्यं हस्तिदंतनखसंख पूर्ति केशादिनां तत्कर्मकारिभ्यः क्रयेणतहि क्रय पूर्वक जीवनम् " - उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३९-४० ४. क. योगशास्त्र, ३ / १०६ ख. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४१ “लक्खवाणिज्जं संजातजीव द्रव्यान्तरविक्रयोपलक्षणं" ५. ६. क. योगशास्त्र, ३ / १०७ ख. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, ९ / ३ / ३४२ ५. ७. " रसवाणिज्जेसुरादिविक्रय' ET - उपासकदशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ४० Jain Education International -उपासक दशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ४० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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