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श्रावकाचार
१३७ कर्म के अनुसार पन्द्रह अतिचार और भी गिनाए गये हैं। उपासकदशांगसूत्र एवं आवश्यकसूत्र में श्रावक के बारह व्रतों के अतिचार के पाठ में पन्द्रह कर्मादानों के केवल नाम निर्देश हैं।' सागारधर्मामृत, योगशास्त्र, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका आदि में इनका स्वरूप भी प्रतिपादित है। पन्द्रह कर्मादान इस प्रकार हैं :१. अंगार कर्म-योगशास्त्र में कोयला बनाकर, भाड़-भंजकर, कुम्हार,
लहार, सुधार, ठठेरे आदि का कार्य करके आजीविका कमाने वालों के कर्म को अंगार कर्म माना है। श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में अग्नि को प्रज्ज्वलित कर कोयला, लोहे आदि के उपकरण बनाने को अंगार कर्म
कहा है । २. वन कर्म-उपासकदशांगसूत्रटीका में वन कर्म का अर्थ ऐसे व्यवसाय
से किया है जिसका सम्बन्ध वनों या जंगलों से हो, जैसे लकड़ी काट कर बेचना या चक्की चलाना अथवा वनस्पति का छेदन सब इसी में सम्मिलित है। योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कटे या बिना कटे वन के पत्तों, फूलों को बेचकर, धान्य को दलकर, पीसकर आजीविका चलाने को वन कर्म कहा है ।
१. क. “कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरस कम्मादाणाइं .... इंगालकम्मे,
वणकम्मे, साडीकम्मे, भाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दंतवाणिज्ज, लक्खावाणिज्ज, रसवाणिज्जे, विसवाणिज्जे, केशवाणिज्जे, जंतपोलगकम्मे, निल्लंछणकम्मे, दवग्गिदावणया, सरदहतलायसोसणया, असइजणपोषणया"
-उवासगदसाओ, १/४७ ख. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अणुव्रत, ७ ग. सागारधर्मामृत, ५/२१,२३
घ. योगशास्त्र, ३/९८ से १०० ङ. श्रावकप्रज्ञप्ति, २८७-२८८ २. योगशास्त्र, ३/१०१ ३. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८७ ४. “वनकर्म च वनस्पति छेदनपूर्वकंतद्वि क्रय जीवनम्"
-उपासकदशांगसूत्रटोका-अभयदेव, पृष्ठ ३९ ५. क. योगशास्त्र, ३/१०२ ___ ख. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ९/३/३३७
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