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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन आदि में चैतन्य द्रव्य से संश्लिष्ट आहार को सचित्तसम्बद्धाहार कहा है।' ३. अपक्वदोष-श्रावकप्रज्ञप्ति टोका में जो भोज्य पदार्थ पका नहीं हो, कच्चा हो, वह अपक्व कहलाता है ।२ आचारसार, भावसंग्रहटीका में अग्नि आदि द्रव्य के द्वारा जिसका रूप, रस, गंध अन्यथा नहीं हुआ हो वह अपक्व दोष वाला होता है । ४. दुष्पक्व दोष-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में जो भोज्य पदार्थ अधपका हो दुष्पक्व माना गया है। सर्वार्थसिद्धि में ठीक से नहीं पके हुए आहार को दुष्पक्व आहार कहा है । ५. तुच्छ औषधि-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में मूंग की फलियों आदि को निःसार वस्तु समझकर तुच्छ नाम दिया है। इस प्रकार व्यक्ति अपने खाने-पीने को तथा वस्त्राभूषण की एक मर्यादा निश्चित कर लेता है, वह चाहे इक्कोस बोलों के रूप में हो, चाहे छब्बीस, सत्रह व अठारह के रूप में। शेष समस्त वस्तुओं का परित्याग करता है। इनमें कन्दमूलादि चेतना युक्त पदार्थ या उससे सटा हआ पदार्थ, आधा पका पदार्थ और गन्ना आदि तुच्छ वस्तुओं के खाने के दोषों से बचना होता है। कर्मादान उपभोगपरिभोगपरिमाणवत के उपर्युक्त पाँच अतिचारों के अतिरिक्त १. क. “तत्प्रतिबद्धं च वृक्षस्थगुंद, पक्वफलादि लक्षणम्" -श्रावकप्रज्ञप्तिटोका,२८६ ख. सर्वार्थसिद्धि, ७/३५ ग. लाटीसंहिता, ५/२१६ २. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८६ ३. क. ....अपक्वं पावकादिभि । द्रव्येरत्यक्तपूर्वस्ववर्ण गंधरसं बिन्दु, आचारसार, ८/५२ ख. भावसंग्रहटीका, १०० ४. "दुःपक्वास्त्वर्धस्विनाः"-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८६ ५. "असम्यक्पक्वो दुःपक्व"-सर्वार्थसिद्धि, ७/३५ ६. "तुच्छास्त्वसारा मुद्गफलीप्रभृतय इति'।-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका २८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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